Book Title: Paumchariu Part 5
Author(s): Swayambhudev, H C Bhayani
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 359
________________ ३४९ पवइमो संधि [१२] लवण और अंकुश दोनोंको बहुत दिनोंमें ज्ञानकी उत्पत्ति हो गयी। देवताओंने उनकी वन्दना की। अन्तमें उन्होंने कोका नाश कर वृनोंसे शोभित पावागिरि पहाड़से निर्वाण प्राप्त किया। इन्द्रजीत मुनिवरने भी जिन्होंने अपने तेजसे दिनकरको परास्त कर दिया था,देवकुल पीठिकापर झान प्रामकर उत्नम मुक्ति प्राप्त की। मेघवाइनने भी अनन्त सुखके स्थान निर्धाणको प्राप्त किया, जिसके मेघरथतीर्थकी लोग प्रशंसा और वन्दना करते हैं। कुम्भकर्ण भी बड़गाँव से शाश्वतसुख मोक्षको गया। कितने ही दिनोंके बाद राम भी त्रिभुवनकल्याणकारी अजर-अमरपुरोंका पालन करनेवाले आदरणीय आदिनाथ भगवान के निकट चले गये ।।१-९।। महाकवि स्वयंभूसे किसी तरह अवशिष्ट और त्रिभुवन सयभू द्वारा रचित पनचरित के शेष मागमें रामका निर्वाण मामक पर्व समास हुआ। वंदहके आश्रित त्रिभुवन स्वयंभू द्वारा रचित महाकाव्यमें पमाघरिसके शेषमागका नब्बेवा सर्ग पूरा हुभा । पप्रचारित पूरा हुमा

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