Book Title: Paumchariu Part 5
Author(s): Swayambhudev, H C Bhayani
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 345
________________ वासोमो संभि २३५ लेश्या रूपी त्रिशूलसे दुर्धर मोहरूपी शत्रुके सौ-सौ टुकड़े कर दिये । जिसने दृढ़ और महान् वैराग्यके बन्धनस्वरूप स्नेहके सकको मि.लिया। तुनहरे स्थिा या किसी और को कसे उपयुक्त होता, तुम अकलेने ही शिवपदको प्राप्त कर लिया। तो भी मुझे छोड़कर तुम क्या जाओगे। कुछ ऐसा करिए जिससे मैं भी आ सकूँ ।" तब उन महामुनि रामने कहा, "हे सुन्दर, तुम सुनो, हे इन्द्र, तुम रागको छोड़ो। जिनभगवान्ने जिस मोक्षका प्रतिपादन किया है, वह विरक्तको ही होता है, सरागी व्यक्तिका कर्मबन्ध और भी पक्का होता है। रामके इन वचनोंसे सीतेन्द्रका मन पवित्र हो गया। उसने अपने दोनों हाथ जोड़कर स्वयं मुनीन्द्र रामकी वन्दना की॥१-९॥ महाकवि स्वयंभूसे किसी प्रकार अवशिष्ट त्रिभुवन स्ययंभू द्वारा रचित पमचरित शेषमागमें 'रामज्ञानीपति नामक' पर्व समाप्त हुआ । बन्दके आश्रित स्वयंभूके पुत्र द्वारा कृत, रामायणके शेष मागमें यह नबासीहाँ सर्ग समाप्त हुआ ।

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