Book Title: Paumchariu Part 5
Author(s): Swayambhudev, H C Bhayani
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 325
________________ भट्टासीमो संधि 3 የዓ रामने दीक्षा ग्रहण कर ली। तब देवताओंने दुन्दुभि बजायी। आकाशसे फूलोंकी वृष्टि हुई । भण-क्षण मन सुगन्धित हवा बहने लगी । नगाड़ेकी ध्वनि दुनियामें नहीं समा पा रही थी॥१-२॥ [११] इसी प्रकार शत्रुघ्न भी विकासशील अपनी राज्यलक्ष्मीका परित्याग कर अपनी परम्परामें अपने पुत्रको स्थापित कर अनुचरोंके साथ मुनि पन गया। बजाजघने भी अपनी पत्नीके साथ संन्यास ले लिया। लंकाके अपने पदपर अपने बेटे भूषणको बैठाकर विभीषणने भी बाह्न त्रिजटाके साथ दीक्षा ग्रहण कर ली । अंगदके पुत्रको अपना पद देकर सुप्रीवने भी दीक्षा ले ली। इसी प्रकार, नल, नील, सेतु, शशिवर्धन, तार, तरंग, रम्भ, रतिवर्धन, गवय, गवाक्ष, शंख, गद, दधिमुख, इन्द्र, महेन्द्र, विराधित, दुर्मुख, जम्बष, रत्नकेशी, मधुसागर, अंगद, अंग, सुबेल, गुणाकर, जनक, कनक, शशिकरण, जयन्धर, कुन्द, प्रसन्नकीर्ति, बेलंधर आदि तथा दूसरे और भी जिनगुणोंका स्मरण करते हुए सोलह हजार राजा दीक्षित हो गये। सुप्रभा प्रमुख राम-लक्ष्मणकी माताओंने मी सुगतिमें जानेके लिए प्रयास किया । जगमें अपना नाम प्रकाशित करनेवाली सैंतीस हजार स्त्रियोंने भी दीक्षा ले ली ॥१-१०।। [१२] महामुनि राम अब स्नेहविहीन थे। पूर्णिमाके चाँदके समान सफेद उनका शरीर था। उन्होंने महावतोंका भारी भार अपने ऊपर उठा रखा था। मदुरूपी शत्रुका निवारण कर दिया था और कामदेवको भी परास्त कर दिया । बारह प्रकारका कठोर तप अंगीकार किया, परीषद सहन किये और युक्तियोंका परिपालन किया । पहाडकी चोटीपर वह ध्यानमें लीन होकर बैठ गये। रातमें उन्हें अवधिज्ञान

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