Book Title: Paumchariu Part 5
Author(s): Swayambhudev, H C Bhayani
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 333
________________ णवासीमो संधि १२३ [३] उस विजन एकान्त सुन्दर महापनमें सीता रामके सम्मुख खड़ी हो गयी, और बोली- मैं विरहके वशीभूत होकर तुम्हारी याद करती रही हूँ और इस प्रकार समस्त स्वर्ग प्रदेश छान मारा। बहुत समयके बाद अपने बचे हुए पुण्यके प्रतापसे किसी प्रकार अपने प्रियतम तुम्हें देख सकी हूँ। अब मैं तुम्हारा घिरह एक झणके लिए भी नहीं सह सकती, बड़ेबड़े युद्धोंके निर्वाह कर्ता, तुम मुझे आलिंगन दो, मीठे आलापोंसे मुझे सम्मान दो, इस तपसे क्या ? मेरे यौवनको मान दो। पत्थरकी चरह अडिग क्या है, विकारोंसे भरकर मेरी ओर देखो । लगता है तुम्हें भूस लग गया है, इसीलिए इतने निर्लज दीख पड़ते हो, वस्त्रषिहीन होकर, व्यर्थ अपना समय गँवा रहे हो। तुमने सचमुच यह कहानी सिद्ध करके बता दी कि जिसमें सुन्दर नामके व्यक्तिने मामाकी लड़कीके प्रेममें अपनी पत्नीको छोड़ दिया था बाद में वह मरकर अपनी पत्नीसे वंचित हो गया ॥१-८॥ [४] मैं वही सीता देवी हूँ, तुम बही राम हो। यह वही धरती है, यह वही राजा है, वही अयोध्या नगरी है, धन-जनमणि-माणिक्य धादिसे समृद्ध । वही राजकुल, अश्व और महागज है । वही पुष्पक विमान, रथश्रेष्ठ हैं, यह वही अन्तःपुर है जिसकी मैं पट्टरानी हूँ | अतः अपने अभीप्सित भोगका आनन्द लो। लक्ष्मणका दुख छोड़ो। हे राम, चार कषाय और बाईस १. "दक्षिणापय गिरिफूट प्राममें प्रधानका सुन्दर नामका पुत्र या उसने अपनी पत्नीको छोड़ दिया । वह मामाकी लड़कीसे विगाह करना चाहता था, बादमें पेड़की डाकसे लटक कर मर गया।"

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