Book Title: Paumchariu Part 5
Author(s): Swayambhudev, H C Bhayani
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 339
________________ ३२९ णवासीमो संधि वहाँ उसने देखा कि कोई कण-कण काटा जा रहा है, कोई सूखे वृक्षकी तरह टुकड़े-टुकड़े किया जा रहा है, कोई सरसोंके समान पेरा जा रहा है. कोई लापन तिल-तिल काटा जा रहा है, किसीको बलिके समान दसों दिशाओं में छिटक दिया गया है, कोई मतवाले हाथियोंसे पीड़ित किया जा रहा था । कोई पीटा, बाँधा और छोड़ा जा रहा था। कोई लोट रहा था, रौंधा और लोंचा जा रहा था। कोई जलता-धता और सीनता। कोई छेदा जाता, अष्ट होता और वेधा जाता। कोई मारा जाता, खाया और पिया जाता। कोई चकनाचूर होता। किसीको काट डालते और फिर बलि दे देते। किसीको दलमल दिया जाता। कोई क्रन्दन करता, कोई जोरसे रोता, कोई अपना पूर्व दुश्मन देखकर दौड़ पड़ता । वहाँ उसने देखा कि शम्बूक कुमार रावणको मार रहा है। उसकी आँखें भयंकर और लाल हैं, उसका शरीर बेसिर-पैरका हो रहा था ॥१-१३।। [९] तब उस सुरश्रेष्ठने सम्बककुमारसे कहा, "अरे अरे दुष्ट, असुर पाप तूने यह दुष्टभाव किसलिए प्रारम्भ किया है । अरे दुराश, तुझे आज भी शान्ति नहीं मिली ! इससे किसी और को कष्ट नहीं होता। दुष्टताको छोड़ और अपना चित्त निर्मल बना। यह सुनते ही जैसे उसपर किसीने अमृत छिड़क दिया हो। शम्बूककुमारकी परिणति शान्त हो गयी। सीतेन्द्र उसे बार-बार प्रतिबोधित करने लगा । उसे विमानमें बैठा देखकर लक्ष्मण और रावण दोनोंने पूछा, “तुम कौन हो और यहाँ किसलिए आये हो ?" इस पर, उस अमरराजने कहा, "मैं वही पुरानी राजा जनककी लड़की हूँ। जिसका पहले रावणने अपहरण किया था, जो स्त्रियों में सर्वश्रेष्ठ थी और निशाचरोंके लिए यमदृष्टि थी । तपस्याके प्रभावसे मैं इन्द्र हुई और रामचन्द्र

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