________________
हिमालीवों संधि
[1] 'इन्द्रपद की उपलब्धि होनेपर सीतादेवीने जो प्रभुता पायी उसका वर्णन कौन कर सकता है ? तीनों लोकोंमें जो भी अनुपम और अद्वितीय है, केवल उसीसे उसकी तुलना सम्भव है। यह सुनकर राजा श्रेणिकने अपने हाथ माथेसे लगाते हुए गणधर गौतमसे पूछा-“हे परमेश्वर, जब विशालकाय
और महाशक्तिशाली पुत्र लवण और अंकुशने दीक्षा ले ली और स्वयं सीतादेवीने शाश्वत सुखका निथान संन्यास अंगीकार कर लिया तब दानवोंके संहारक राम क्या करेंगे? लक्ष्मण क्या करेंगे ? पवनपुत्र क्या करेगा ? भामण्डल, कनक और अनक क्या करेंगे? हनूमान, माहेन्द्र, चन्द्रोदर, जाम्बवान, इन्दु और कुन्द क्या करेंगे । नल, नील, शत्रुघ्न, अंग, पृथुमति, सुषेण, अंगद और तरंग क्या करेंगे, लक्ष्मणके आठों पुत्र क्या करेंगे और साढ़े तीन सौ पुत्र क्या करेंगे? गय, गवार, चन्द्रकर, दुर्मुख तथा रामके दूसरे-दूसरे अनुचर क्या करेंगे। विमलबुद्धि अपराजिता, सुमित्रा, गुणश्रेष्ठ सुप्रभा, द्रोणराजाकी बेटी विशल्या क्या करेगी, हे देव यह सब कृपया बताइए"॥१-११।।
[२] यह वचन सुनकर मुनिजनोंके लिए सुन्दर अन्तिम गणधर गौतमने कहना प्रारम्भ किया, "हे श्रेणिक, सुनो । बताता हूँ। दृढ़ मनवाले राम और लक्ष्मणको जिनका यश दशों दिशाओं में फैला हुआ है जिन्होंने साहसके अगणित काम गिनाये हैं, जो सुरवर और मनुष्योंके मेत्रों के लिए, आनन्ददायक हैं, जिन्होंने बड़े-बड़े शत्रुओंके नगरोंको नष्ट कर दिया है, कंचन