Book Title: Patanjalyoga evam Jainyoga ka Tulnatmak Adhyayana Author(s): Aruna Anand Publisher: B L Institute of IndologyPage 10
________________ इच्छा तो यह थी कि डॉ० अरुणा आनन्द की इस रचना के लिए एक ऐसी भूमिका लिखी जाती, जिससे सभी धर्मों, योग-मार्गों, अध्यात्म साधनाओं और लोककल्याण अथवा लोकमुक्ति की अखण्ड साधना के कर्मपथ पर आरूढ़ कर्मयोगियों की दृष्टि से परम सत्य के शोध-बोध के इन सब उपायों/मार्गों में जो तात्विक समन्विति है, जो एकता है, जो आनन्दानुभूति है, उसका यत्किंचित् रसास्वाद सुधी पाठकों को हो सके। इस इच्छा के कारण ही डॉ० अरुणा आनन्द की इस रचना का प्रकाशन, इसकी प्रेस कॉपी तैयार होने के उपरान्त भी लगभग एक वर्ष तक रुका रहा, क्योंकि अपेक्षित तत्त्वगर्भित विस्तृत भूमिका लिखने का अवकाश नहीं मिल पाया। इस अक्षम्य देरी के लिए यह सम्पादक डॉ० अरुणा आनन्द और सुधी पाठकवृन्द का क्षमाप्रार्थी है। डॉ० अरुणा ने इस रचना को प्रस्तुत करने में जितना समय, श्रम, शक्ति व्यय की है, उन्हें निकट से जानने वाले ही उसका आकलन कर सकेंगे। इस रचना का स्वाध्याय पाठकवृंद की योग-अभिरुचि को तनिक भी जगा पाया, तो लेखिका का श्रम सार्थक होगा। भोगीलाल लहेरचन्द भारतीय संस्कृति संस्थान का यह १३ वाँ पुष्प है। संस्थान की योजना है कि भविष्य में एक-एक कर विभिन्न परम्पराओं के ऐसे ग्रन्थ-रत्नों को श्रृंखलाबद्ध रीति से प्रकाशित किया जावे। आशा है इस सत्प्रयोजन की पूर्ति में हमें सम्पूर्ण समाज और सत्यार्थी व जिज्ञासु पाठकों का अपेक्षित सहयोग प्राप्त हो सकेगा। दिल्ली, मंगलवार दि. २६ जनवरी १६६६ स्वाधीन भारत का ५०वाँ गणतंत्र दिवस। विमल प्रकाश जैन vili Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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