Book Title: Patanjali Yoga Sutra Part 01
Author(s): Osho
Publisher: Unknown

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Page 4
________________ तदास्तु: स्वस्वपेऽवस्थानम् ।। 311 तब साक्षी स्वयं में स्थापित हो जाता है। वृत्तिसास्वषमितरत्र ।।४। अन्य अवस्थाओं में मन की वृतियों के साथ तादात्म्य हो जाता है। हम एक गहरी आंांति में जीते हैं आशा की भांति में, किसी आने वाले कल की, भविष्य की भ्रांति में। जैसा आदमी है, वह आत्म-वंचनाओं के बिना जी नहीं सकता। नीत्से ने एक जगह कहा है कि आदमी सत्य के साथ नहीं जी सकता; उसे चाहिए सपने, आंतियां; उसे कई तरह के झूठ चाहिए जीने के लिए | और नीत्से ने जो यह कहा है, वह सच है। जैसा मनुष्य है, वह सत्य के साथ नहीं जी सकता। इस बात को बहुत गहरे में समझने की जरूरत है, क्योंकि इसे समझे बिना उस अन्वेषण में नहीं उतरा जा सकता जिसे योग कहते हैं। और इसके लिए मन को गहराई से समझना होगा उस मन को जिसे झूठ की जरूरत है, जिसे भ्रांतियां चाहिए उस मन को जो सत्य के साथ नहीं जी सकता; मन जिसे सपनों की बड़ी जरूरत है। तुम केवल रात में ही सपने नहीं देखते; तुम तो जब जाग रहे हो तब भी लगातार सपने ही देखे चले जाते हो। तुम मुझे देख रहे हो, सुन रहे हो, लेकिन एक सपने की धारा लगातार तुम मैं दौड़ी चली जा रही है। मन लगातार सपने, स्वप्न और कल्पनाएं बनाता जा रहा है। अब वैज्ञानिक कहते हैं कि मनुष्य नींद के बिना तो जी सकता है, लेकिन सपनों के बिना नहीं जी सकता। पुराने समय में समझा जाता था कि नींद जीवन की बड़ी जरूरत है। लेकिन अब आधुनिक खोजें कहती हैं कि नींद सचमुच कोई बड़ी जरूरत नहीं है। नींद की जरूरत है, ताकि तुम सपने देख सको। सपने जस्वरी हैं यदि तुम्हें नींद में सपने न देखने दिया जाए, तो सुबह तुम अपने को ताजा और जीवंत नहीं पाओगे। तुम स्वयं को इतना थका हुआ पाओगे जैसे कि बिलकुल सो ही नहीं पाये।

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