Book Title: Pashu Vadhna Sandarbhma Hindu Shastra Shu Kahe Che
Author(s): Jain Shwetambar Conference
Publisher: Jain Shwetambar Conference
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कलियुगे वर्ज्य तेमां आने लगतांज लखेल छे. वृहन्नारदीये "देवराच्च सुतोत्पत्ति मधुपर्क पशोर्वधः मांसदानं तथा श्राद्धे वानप्रस्थाश्रम स्तथा ॥ अर्थ - दीयर थकी पुत्रनी उत्पत्ति, मधुपर्क, पशुनो वध, श्राद्धमां मांसनुं दान तथा वानप्रस्थाश्रम ए कलियुगमां त्याज्य छे. हेमाद्रि, ब्राह्ममां कहे छे के, गोत्रान्मातुः सपिंडाया विवाहो गोवधस्तथा, नराश्वमेधो मद्यं च कलौ वर्ज्य द्विजातिभिः ।। माताना गोत्र थकी तथा पोताना सपिंडी गोत्र थकी विवाह न करवो, गोवध न करवो तथा नरमेध, अश्वमेध, अने मद्यपान कलियुगे ब्राह्मण क्षत्रि अने वैश्यने वर्ज्य छे. अक्षता गौ पशुचैव श्राद्धे मांसं तथा मधु, देवराच्च सुतोत्पत्तिः । कलौ पंच विवर्जयेत् । इति निगमोक्तिः ॥ अक्षत स्त्री, गाय, पशु, श्राद्धमां मांस तथा मद्य, दीयर थकी पुत्रनी उत्पत्ति ए पांच कलियुगमां वर्जवां एम निगममां कहेल छे. वरातिथिपितृभ्यश्च पशूपाकरणक्रियेति कलिवर्ज्येषु ॥ हेमाद्रावादित्यपुराणे च ।। वरने, अतिथिने, पितृने, पशुरुपी उपाकरण क्रिया ते कलियुगमां वर्ज्य छे एम हेमाद्रि तथा आदित्य पुराणमां छे. भागवतना चोथा स्कंधमा प्राचीन बर्हिषी राजाने नारदे कयुं छे के —— हे प्राचीन बर्हिषी राजा, तें जे यज्ञमां हजारो पशुओ मारी नांख्यां ते तें केवळ अधर्म कर्यो छे. कारण के ते पशुओ तारी वाट जोड्ने रह्यां छे, के आ राजा क्यारे मरे के तेणे अमने जेम मारेल छे ते प्रकारे पाछु अमारुं वैर लइए. माटे हे राजन् ते पशुओ तारी वाट जोड़ने ऊभा छे तेमने प्रत्यक्ष जो. मतलब के अहिंसा एज परम धर्म छे. महाभारतांतर्गत शांति पर्वना अध्याय १५२ मां कहेल छे के “अद्रोहः सर्वभूतेषु कर्मणा मनसा गिरा, अनुग्रहश्च दानं च सतां धर्मः सनातनः ।। अर्थः-मन, वाणी तथा कर्मे करी प्राणी मात्र नो द्रोह न करवो, दया राखवी, तथा उपकार करवो ए सत् पुरुषनो सनातन धर्म छे. तथा अध्याय ११६ मां कहेल छे जे - अहिंसा परमो धर्म स्तथाऽहिंसा परोदमः || अहिंसा परमंदानमहिंसा परमं तपः । अर्थ :- अहिंसा ए उत्तम धर्म, उत्तम दम, उत्तम दान, तथा उत्तम तप छे, वळी एज पर्वमां कहेल छे जे-यथा नागपदे न्यानि पदानि पदगामिनाम् || सर्वाण्येवापि धीयते पदजातानि कौंजरे || एवं सर्व महिंसायां, धर्मार्थमपि धीयते ॥ अर्थः- जे प्रकारे हाथीना पगमां पगवडे चालनार सर्व प्राणियोना पग अंतर्भूत थाय छे ते प्रमाणेज यज्ञ, तप, दानादिक सर्वे धर्म अने अर्थ अहिंसाने विषे अंतर्भूत थाय छे. विष्णुशर्मा कहेल छे जे-मतर्व्यमिति यद्दुःखं पुरुषस्योप जायते । शक्यस्तेनानुमानेन परोऽपि परिरक्षितुम् ॥ अर्थ: - पुरुषने मरण संबंधी जे दुःख थाय छे, ते उपमाए जोइ ते अनुमानथी अन्य प्राणियोनी पण रक्षा करवा योग्य छे तेमज महाभारतांतर्गत अनुशासन पर्वना अध्याय १११ तथा ११६ मां कहेल छे जे - प्राणा यथात्मनोऽभीष्टा भूतानामपि वै तथा, आत्मौपम्येन मंतव्या बुद्धिमद्भिः कृतात्मभिः अर्थ - जे प्रमाणे पोतानो प्राण पोताने प्रिय छे. तेज प्रमाणे बीजा प्राणियोने पण तेओनो प्राण तेओने प्रिय हशे ए प्रमाणे पोतानी उपमाए बुद्धिमान ज्ञानियोए विचार. वळी कयुं छे के नहि प्राणात्मियतरं लोके किंचन विद्यते ॥ तस्माद्दयां नरः कुर्याद्यथात्मनि तथापरे । अर्थ- वळी जगत्मां प्राणथी अधिक प्रिय कांइपण जणायलुं नथी ते
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