Book Title: Parshvanath
Author(s): Chauthmal Maharaj
Publisher: Gangadevi Jain Delhi

View full book text
Previous | Next

Page 4
________________ दोनों का चरित ३६ का-सा अंक है। एक आत्मा के उत्थान का सानात् निदर्शन करना है, दूसरा पतन की प्रतिमूर्ति है । पर जैनधर्म ऐसा पतित-पावन है, कि वह कमठ जैसे पापी को भी अंत से देव बना देता है। साथ-साथ चलने वाले दोनों चरित्रों से प्राध्यात्मिक जिज्ञासुओं को तुलना की वडी अच्छी सामग्री मिलती है। इस चरित की यह असाधारणता वेजोड़ है और इससे इसका स्थान बहुत ऊँचा हो जाता है। इस सुन्दर रचना के लिए मुनि श्री वास्तव मे धन्यवाद के पात्र हैं । आशा है भविष्य मे उनकी और भी सुन्दर रचनाएँ जनताको पढ़ने का मौका मिलेगा। -शोभाचन्द्र भारिल्ल, न्यायतीर्थ 60

Loading...

Page Navigation
1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 ... 179