Book Title: Paniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 06
Author(s): Sudarshanacharya
Publisher: Bramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar

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Page 9
________________ पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् इच्छा के फलस्वरूप सर्वप्रथम गुरुवर की प्रेरणा से व्याकरणकारिका-प्रकाश' नामक रचना लिखकर २०१८ वि० (१९६१ ई०) श्रावणी उपाकर्म के शुभ अवसर पर आचार्यप्रवर भगवान्देव आचार्य (वर्तमान स्वामी ओमानन्द सरस्वती) को भेंट की गई और आर्यकुमार सभा गुरुकुल झज्जर ने उसका प्रकाशन किया। __अष्टाध्यायी पर भी वृत्ति लिखने का कार्य अनेक बार प्रारम्भ किया किन्तु वह भध्य में ही छुट जाता था क्योंकि किसी महापुरुष के सहयोग के बिना कोई भी महान् कार्य पूरा नहीं हो सकता। दिनांक ११ अक्तूबर १९९६ को आर्यसमाज जनकपुरी नई दिल्ली में विद्वद् गोष्ठी के अवसर पर स्वामी ओमानन्द जी सरस्वती ने अष्टाध्यायी पर एक अच्छी व्याख्या लिखने की प्रेरणा दी और उसके प्रकाशित करवाने का भी आश्वासन दिया। अक्तूबर १९९२ से अष्टाध्यायी प्रवचन का कार्य चल रहा था। स्वामी जी महाराज के आशीर्वाद से इस कार्य को बड़ी प्रगति मिली। जुलाई १९९३ में रोग के झञ्झावत ने कायातरु को मूल से उखाड़ने का प्रयत्न किया किन्तु प्रभु की इच्छा के सामने रोग को परास्त होना पड़ा और मैं स्वास्थ्यलाभ करके दिसम्बर १९९५ में राजकीय सेवा से निवृत्त होकर इस महान कार्य की पूर्ति में संलग्न हो गया। परमपिता परमात्मा की असीम दया और गुरुवर स्वामी ओमानन्द सरस्वती आचार्य गुरुकुल झज्जर (हरयाणा) के शुभ आशीर्वाद से यह महान कार्य लगभग ७ वर्ष की कठोर साधना के पश्चात् दिनांक २६-८-९९ (श्रावणी उपाकर्म) को पूरा हो गया और मेरे जीवन की एक प्रबल इच्छा पूर्ण हो गई। धन्यवाद ___ इस ग्रन्थ के शुद्ध मुद्रण तथा अपनी हस्तलिखित अष्टाध्यायी वृत्ति के प्रदान से भी इस कार्य में पं० वेदव्रत शास्त्री मालिक आचार्य प्रिंटिंग प्रेस रोहतक ने महत्त्वपूर्ण योगदान किया है। आचार्य प्रिंटिंग प्रेस के कर्मचारी श्री सुरेन्द्रकुमार चतुर्वेदी ग्राम-शिवपुर (नारायण-गुफा) पो०-विन्ध्याचल, जिला-मिर्जापुर (उ०प्र०) ने उत्तम टङ्कण कार्य किया है। श्रीमती सुशीला देवी ने मुझे गृहकार्यों से निश्चिन्त करके इस साहित्य-यज्ञ में अपनी अनुपम आहुति डाली है। इस महान् कार्य में जिन सज्जनों ने किसी भी रूप में मुझे सहयोग प्रदान किया है, उनका हार्दिक धन्यवाद है। न त्वहं कामये राज्यं न स्वर्ग नापुनर्भवम् । कामये वेदकामानां छात्राणामार्तिनाशनम् ।। -सुदर्शनदेव आचार्य संस्कृत सेवा संस्थान दूरभाष : ०१२६२-७००७० ७७६/३४, हरिसिंह कालोनी, रोहतक (हरयाणा) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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