Book Title: Paniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 06
Author(s): Sudarshanacharya
Publisher: Bramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar

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Page 5
________________ पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् विदित होता है कि आपिशलि के व्याकरणशास्त्र का परिमाण अष्टाध्यायी के तुल्य आठ अध्याय आत्मक था। आचार्य वररुचि (कात्यायन) और पतञ्जलि के समय इनके व्याकरणशास्त्र का अच्छा प्रचार था। जैसा कि पतञ्जलि ने लिखा है-आपिशलमधीते इति आपिशला ब्राह्मणी । इससे ज्ञात होता है कि आपिशलि का व्याकरणशास्त्र बहुत सरल था जो कि बालक और स्त्री आदि सुकुमार बुद्धि जनों को अतिप्रिय था। (१) आठ अध्याय आत्मक व्याकरणशास्त्र, धातुपाठ, गणपाठ, उणादि सूत्र, शिक्षा, कोष, अक्षरतन्त्र ये आचार्य आपिशलि की रचनायें मानी जाती हैं। उणादि सूत्र और शिक्षा नामक रचनायें आज भी उपलब्ध हैं। (२) काश्यप (३००० वि० पूर्व) .. पाणिनि मुनि ने आचार्य काश्यप का अष्टाध्यायी में दो बार नाम-उल्लेख किया है-'तृषिमृषिकृशे: काश्यपस्य' (१।२।२५) और 'नोदात्तस्वरितोदयमगार्यकाश्यपगालवानाम्' । आचार्य काश्यप महान् वैयाकरण और कल्पशास्त्र के प्रवक्ता थे। रचना-काश्यप कल्प, काश्यपीय सूत्र, काश्यप संहिता (आयुर्वेद) छन्द:शास्त्र, शिल्पशास्त्र, अलंकारशास्त्र, पुराण ये आचार्य काश्यप की रचनायें मानी जाती हैं। (३) गार्ग्य (३१०० वि० पूर्व) पाणिनि मुनि ने अष्टाध्यायी में आचार्य गार्य के मत का तीन स्थानों पर प्रयोग किया है- 'अड् गार्यगालवयो:' (७ ।३।९९), 'ओतो गार्यस्य' (८।३।२०), नोदात्तस्वरितोदयमगार्ग्यकाश्यपगालवानाम् (८।४।६७)। गार्ग्य शब्द में 'गर्गादिभ्यो यञ् (४।१।१०५) से गोत्रापत्य अर्थ में 'यञ्' प्रत्यय है-गर्गस्य गोत्रापत्यमिति गार्य: । इससे स्पष्ट है कि इनके पितामह का नाम 'गर्ग' था, जो कि प्रसिद्ध वैयाकरण आचार्य भारद्वाज के पुत्र थे। समय-आचार्य यास्क ने निरुक्तशास्त्र में एक नैरुक्त आचार्य के मत का उल्लेख किया है। इससे सिद्ध होता है कि आचार्य गार्ग्य, यास्क से प्राचीन हैं। यास्क का समय महाभारत युद्ध के समीप का माना जाता है। सुश्रुत के टीकाकार डल्हण ने गार्ग्य को धन्वन्तरि का शिष्य बतलाया है और आचार्य गालव को उनका समकालीन कहा है। यदि आचार्य गाठ और गालव समकालीन हों तो इनका समय पूर्वोक्त महाभारत काल से भी प्राचीन है जो कि लगभग ५५०० वि० पूर्व होना चाहिये। रचना-व्याकरणशास्त्र, निरुक्त, सामवेद पदपाठ, सामतन्त्र, भूवर्णन, तक्षशास्त्र, तन्त्रशास्त्र ये आचार्य गार्य की रचनायें मानी जाती हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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