Book Title: Paniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 06
Author(s): Sudarshanacharya
Publisher: Bramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar

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Page 4
________________ ओ३म् पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् अनुभूमिका व्याकरणशास्त्र के प्राचीन आचार्य व्याकरणशास्त्र के इतिहास के अनुसार अष्टाध्यायी के प्रवक्ता पाणिनि मुनि से पूर्ववर्ती निम्नलिखित व्याकरणशास्त्र के २५ प्रमुख आचार्य माने गये हैं १-महेश्वर (शिव), २-इन्द्र, ३ - वायु, ४- भारद्वाज, ५-भागुरि, ६-पौष्करसादि, ७-चारायण, ८-काशकृत्स्न, ९ - शन्तनु, १० - वैयाघ्रपद्य, ११- माध्यन्दिनि, १२ - रौढि, १३- शौनकि, १४- गौतम, १५ - व्याडि, १६ - आपिशालि, १७ - काश्यप, १८ - गार्ग्य, १९ - गालव, २०- चाक्रवर्मण, २१- भरद्वाज, २२- शाकटायन, २३ - शाकल्य, २४ - सेनक, २५ - स्फोटायन । पणिनि मुनि ने इन २५ आचार्यों में से आपिशलि से लेकर स्फोटायन पर्यन्त १० आचार्यों का अष्टध्यायी में उल्लेख किया है । अत: उनका पाठकवृन्द के लाभार्थ वर्णानुक्रम से संक्षिप्त परिचय प्रस्तुत किया जाता है । (१) आपिशलि ( ३००० वि० पूर्व ) आचार्य आपिशलि एक सुप्रसिद्ध वैयाकरण थे । पाणिनि मुनि ने अष्टाध्यायी में इनका एक बार 'वा सुप्यापिशले:' ( ६ ११ । ९२) सूत्र में स्मरण किया है। आपिशलि शब्द अपत्य - प्रत्ययान्त है- अपिशलस्यापत्यमिति आपिशलि: । इससे प्रकट होता है इनके पिता का नाम 'अपिशल' था । पाणिनि मुनि ने आपिशलि शब्द का क्रौड्यादिगण ( ४ 1१1८० ) में पाठ किया है । अतः कई विद्वानों का मत है कि बहिन का नाम 'आपिशल्या' था। पाणिनि मुनि ने 'छात्र्यादय: शालायाम् ( ६ । २ । ८६) सूत्र में ‘आपिशलिशाला' का भी उल्लेख किया है- 'पदेषु पदैकदेशाः प्रयुज्यन्ते' के अनुसार यहां 'शाला' शब्द पाठशाला का वाचक है। यह लेख आचार्य आपिशलि की एक विशिष्ट पाठशाला की ओर संकेत करता है । समय- पाणिनीय अष्टाध्यायी में आचार्य आपिशलि का उल्लेख होने से यह स्पष्ट है कि आपिशलि पाणिनि मुनि से प्राचीन हैं । पाणिनि मुनि का स्थितिकाल २९०० वि०पू० माना जाता है। इससे सिद्ध है कि आपिशलि विक्रम से लगभग ३००० वर्ष प्राचीन हैं । बौधायन श्रौतसूत्र के प्रवर अध्याय के भृगुवंश में आपिशलि का वर्णन मिलता है। अतः आपिशलि भृगुवंशीय आचार्य हैं। रचना-जैन सम्प्रदाय के आचार्य पाल्यकीर्ति ने शाकटायन व्याकरण की वृत्ति (३ । २ । १६१) में एक उदाहरण दिया है- 'अष्टका आपिशला पाणिनीया:' । इससे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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