Book Title: Pandita Todarmal Vyaktitva aur Krititva
Author(s): Hukamchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 7
________________ प्रस्तुत शोध-प्रबंध की इयत्ता यहीं तक ही नहीं है। इसमें टोडरमलजी की सम्पूर्ण रचनात्रों के अतिरिक्त उनकी गद्य शैली और भाषा का भी अध्ययन प्रस्तुत किया गया है, जो प्रबंध के शीर्षक 'कत्व' को दृष्टि में रखते हुए ठीक ही है। पंडित टोडरमलजी की भाषा को हम 'मिश्रित हिन्दी भाषा' कह सकते हैं। उदाहरण के रूप में पिंगल, जिसका व्याकरणिक प्राधार तो ब्रजभाषा है किन्तु जिसमें राजस्थानी का प्रभुतशः सम्मिश्रण है। अभी तक जहाँ तक जानकारी है, पिंगल के अतिरिक्त अन्य किसी ऐसी मिश्रित भाषा और उसके साहित्य पर कार्य नहीं हुआ। विभिन्न शास्त्र-भण्डारों और संग्रहालयों में अनेक ऐसी रचनाएं मिलती हैं, जिनकी भाषा विचार के नये आयाम प्रस्तुत करती है। ब्रज और खड़ी बोली, राजस्थानी और खड़ी बोली, अन्नधी और राजस्थानी और कहीं-कहीं तो तीन-तीन भाषाओं का मिश्रण भी एक ही रचना में देखने को मिल जाता है, यथा- राजस्थानी, अज और खड़ी बोली। पंडित टोडरमलजी की भाषा ऐसी ही मिश्रित भाषा है। इसमें मूलाधार के रूप में तो ब्रज है पर ढूंढाड़ी (जयपुरी) और खड़ी बोली का पुट भी मिलता है । भाषा सामाजिक दाय है । एक व्यापक समाज को सहजरूपेण बोधगम्य कराने की दृष्टि से संभवत: टोडरमलजी ने इस तरह की भाषा अपनाई थी। ऐसी भाषाओं और उनके साहित्यों का अध्ययन, समय-समय पर बदलते समाज और उसके मान्यतापरिवर्तन, तथा मान मूल्यों एवं सांस्कृतिक विरासत की दृष्टि से भी अध्ययनीय है । प्रस्तुत ग्रन्थ के पांचवें और छठे अध्याय – पंडित टोडरमलजी की शैली और भाषा का अध्ययन - ऐसी मिश्रित भाषाओं पर काम करने वाले परवर्ती शोधाधियों के लिए अनेक दृष्टियों से दिगनिर्देश करते हैं । इस ओर शोधाथियों द्वारा प्रयास अवश्य किया जाना चाहिए । विभिन्न प्रदेशों के दिगम्बर जैन समाज के प्रवचनों में व्यापक रूप से पंडित टोडरमल जी की यह भाषा चलती और समझी जाती रही है, जबकि इन प्रदेशों की बोलियौं भिन्न-भिन्न हैं । भाषायी एकता का यह बड़ा प्रमाण है। ( i)

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