Book Title: Pandav Charitra Balavbodh Author(s): Publisher: ZZ_Anusandhan View full book textPage 6
________________ पणि जे को वर परणिसिइ इणि संसारि न एह सभी तो हुं जांणुं धन्य ॥ कन्या इसी सुचंग । गरूउं नाम सुगंग ॥ ईहां पधारइं राउ । गुण करणी निम्मल सुमइ बीजा त्रीजा टी ( दी ? ) हडा बोलावई एह कुमरि-नई ईहां राजन आविउ हतु तिणि कंन्या देखी करी मणिहिं खेउ राजन म धरि पुंण्य - उदय इह आवीआं इम कहतां तिणि महावणि आविया घण घंटा - रवि रहवर हथीआरहं भरिया जांणे किरि चक्कवइ - दल इम करतां वेअड्ड- गिरि हरखिउ देखीय सेण बहु राजा-स्यांतन भइ जे तम्ह मनि छइ ते वचन जइ लोपुं वाचा किमइ अवगिणि जिउ (?) उ गंगा मंडलीअ मंडलीअ मिलि ass महोत्सव तिहा कीड रा पुहुत्तु पुरि आपणइ हथणाउरि पुरि पाणि जं गंगा - रांणी कहइ वाच न चूकई गंग-वर गंगा गंगावर - सरिस पुण्य-पसाइहिं केतले * आ पंक्ति अने पछीनी पंक्ति हांसियामा उमेरेली छे. [73] For Private & Personal Use Only Jain Education International संभालइ वण - ठाउ ।। साथि इक नेमित्त । संभाली इक वत्त || म करिसि कय संताप । गलीअ गयां सवि पाप ॥ मलपंता मातंग | बहु पाखरिया पवंग ॥ निर पायल असवार । कोई न लाभई पार ॥ पहुतु राजा जंन्ह । कुरुवइ रा-स्यां तंन ॥ हरिषिरं करु विवाह | * तिणि मझ दक्षिणा बाह || तु मझ एह ज डंड । सुमइ बुल्लइ इम बलवंड ॥ वेअड्डू - गिरि-सनाह । गंगा-तणउ विवाह || सरिसी राणी गंग । उत्सव हुआ अति चंग ॥ तं तं राउ करंति कहिउं स ते पालंति ॥ सुह भोगवइ समान । दिणि उपनुं ओधांन ॥ 4 ३५ ४० www.jainelibrary.orgPage Navigation
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