Book Title: Pandav Charitra Balavbodh
Author(s):
Publisher: ZZ_Anusandhan
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वली बोली
तेना वडां - तणी वार्त्ता सांभली राजा स्यांतन विच्छाय हूउ छइ । मनइमाहि विमासिवा लागु छइ । ए बापडां साचीअ - इ जि वात कहई छ । (२ख) जींह- नइ गांगेउ सरीखु बेटु हुइ, तां बेडी - वाहा - नी बेटीनां बेटां- नई राज न हुई । मोटा राय - ना बेटा नीच कर्म्म करता लाजई ! एक माह मुहत जाइ । बीजुं तीह - नुं इ मुहत जाइ । एह कारण इह - नई लाभ कांई न हुइ । राजा कालुं मुह करी पाछु वलिउ ।
श्लोक
कूपच्छाया सरंग धूली च ( ? ) । भाग्यहीन - मनोरथाः ॥ वलिउ जांणे किरि सीकोतरि- छलिउ । मषी - वर्ण दीठु गांगेइ ||
कय पर - चक्रागम थिउ अगालि लोपी आण किणिहि सीमालि ।
१००
अ- भगति कइ हूई माहरी जां राय- नुं न लाभई मंत्र मंति अमायत पूछिया कुमरि गयु नावडां-तणइ अवासि भणइ नावडु नइ नावडी आगे अम्हि अणमांनिउ राउ मन-नी वात सवे वलि कही वली वात सांभलि गांगेउ जई किवार राजसन पडइ समरी -: - गलइ छाजइ नवि हार सावधान सांभलि एतलुं
वन- कुसुमं कृपण- श्रीं एतानि विलयं यान्ति स्याम वणि मुहि राजा बीजइ दिवसि सभां बइसेइ
कइ रांणी गंगा सांभरी ॥ तां मई नवि करितुं भोजन । जांणि वात सवे तिणि स-धरि ॥ करइ वीनती तीह बिहुं- पासि | धीअम मागिसि भइ अम्ह तणि ॥ हव तम्ह मागेवा नवि ठाउ । रा दीकिरी न देसिउं सही ॥ इक अकुलीणां अर्छु अम्हे उ । किम कारेली सुर-तरी चडइ ॥ किम नावडी राउ भरतार | झूझिया - पांहइ लूविउ भलुं ॥ वली बोली
नावडां- तणां क्वन सांभली गांगेउ--कुमर कहइ छ । भई सांभाळ वात । जां कांई हुं माहरा बाप - नु मनोर्थ पूरी न सकुं, तां कांई मझ भोजन करिवा नीम । वली जे तम्हे वार्ता कहु छु, ते वात सघलीअ - इ साची ।
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