Book Title: Pandav Charitra Balavbodh
Author(s):
Publisher: ZZ_Anusandhan
View full book text
________________
२००
[1111 किहां वइताढ (किहां) ए रांन मझ तई दीधुं जीवी-दांन
विरला जाणंति गुणा, विरला विरयंति ललिय-कव्वाइं ।
विरला पर-कज्ज-करा, पर-दुक्खे दुक्खिया विरला ॥ हिव आपणपा बिहुं सनेह जेहु मोर अनइ वलि मेह एह नेह राखे हुए भंग अविचल प्रीति अनइ मन-रंग तुं तो राउ वसुह-विख्यात मझ आगलि कहि मन-नी वात जइ भांजी न सकुं संताप तु मझ कृतघन-केरु पाप
ददाति प्रतिगृह्णाति, गुह्यमाख्याति भाषते । भुंजयते भुंक्ते चैव, षड्विधं प्रीति-लक्षणम् ॥
(दोहा) पांडु भणइ बांधव निसुणि कहीसु कूती-वत्त मझ यादव-वंश जा न दिइ तिणि हुं अछु सचित तं सुणि विद्याधर भणइ एह जि मुद्रा लेह मनह मनोरथ परिसिइ मनि माणिसि संदेह इणि विद्या छइ थंभणी वमीकरण इणि होइ कज-सिद्धि अदृशीकरण अतुलाअ बल इणि जोइ इणि करि थिकी सहू नमइ राउल रा राजिंद जइ लवलेस सुकीअ हुइ संभलि पांडु नरिंद आपुं अगास-गामिनी विद्या हुं तम्ह-रेसि इणि मुद्रां अधिकी फुरइ हीडे देसि विदेसि
२०५ विद्याधर मुकलावि गिउ वलि आपणइ सुवासि मुद्रा पिहिरी राइ करि जोई वात विमासि
(पांडुनुं शौरीपुर-गमन)
(चउपई) विद्या-बलि ऊपडिउ अगासि गिउ सोरीपुर-तणइ निवासि रमलि-रेसि तिहां कूती (क) अछइ गयु पांडु तिणि वनखंडि पछइ इसइ सूर आथमिउ सु जांणि नव-पल्लव लेवा अहिनांणि धात्री गई माहि वन खंड अदृश न देखइ कुंती पांडु
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org

Page Navigation
1 ... 27 28 29 30