Page #1
--------------------------------------------------------------------------
________________
मेरुरन - उपाध्याय-शिष्य-कृत पांडवचरित्र - बालावबोध
जैन परंपरा प्रमाणेनी महाभारतकथा के पांडवचरित्र विषयक आ जूनी गुजराती भाषामां रचेल बालावबोधनी, सद्रत मुनि जिनविजयजीनी पासेधी मळेली एक मात्र हस्तप्रतने आधारे अहीं आपेलो पाठ तैयार कर्यो छे.
हस्तप्रतमां कुल ९० पत्र छे. पाठ अधूरो छे. जरासंधवध अने पछीना नेमिचरित्रना, नेमिनाथे कृष्णनुं मन राखवा अनिच्छाए विवाह करवानुं स्वीकार्यु छे एवी आकाशवाणी एटला अंश पछी प्रतनुं लखाण अटक्युं छे. पुष्पिका पण नथी. एटले कर्ता, लेखन-संवत, लेखनस्थान वगेरेनो निर्देश पण नथी. प्रतनी प्रतिलिपि अधूरी ज छोडी देवाई छे.
प्रत झीणा अक्षरे स्पष्टपणे लखाई छे. अशुद्धिओ ओछी छे. कोईक शब्द चूकी जवायो छे कोईक कोईक पंक्ति पण. अनुनासिक, ह्रस्वदीर्घ, सकारशकार वगेरेना लेखन बाबत केटलीक असंगति छे, जे बीजी जूनी गुजराती हस्तप्रतोमां जेटली मळे छे तेना प्रमाणमां ठीकठीक ओछी छे. केटलीक देखीती भूलो सुधारी लीधी छे. अर्थ के पाठ अस्पष्ट के शंकास्पद लाग्यो छे त्यां ए शब्द के पंक्तिनी पासे प्रश्नार्थ मूक्यो छे. पत्रदीठ २३थी २५ पंक्ति अने पंक्तिदीठ ६६ थी ७५ अक्षरो छे. लखाणनुं कुल माप केटलुं छे तेनो अंदाज सहजपणे आपी शकाय तेम नथी, केम के कृतिनो अमुक अंश गद्यमा ('बोली'मां), अने अमुक अंश पद्यमां (मुख्यत्वे दुहा, चोपाई) एम उत्तरोत्तर चाले छे, अने लहियाए आपेल क्रमांक माटे गद्यांशना एकमनो शो आधार छे ते सहेजे नक्की थई शके तेम नथी. परंतु प्रतनुं लखाण ज्यां अटक्युं छे, त्यां सुधी (आगळ आवी गयेला ५६००ना आंकड़ा पछी १थी शरू करीने १६ सुधीना क्रमांक मळे छे तेथी) ५६१६नी संख्या थाय छे.
पांडवकौरव -सेना युद्ध माटे सज्ज थई सामसामे आवी रही अने रणवाद्योनो कोलाहल थयो त्यां सुधीनी कथा पछी ७१मा पत्रना पहेला पृष्ठ पर, चालु वर्णन वच्चे नोंध मूकेली छे. लहियाए आपेला क्रमांक ४७८१ पछीनी पहेली बे पंक्ति पछी नीचे प्रमाणे छे :
जड़ किमइ वाग् वाणी सरस्वती तूसइ, वली विदुर-शिरोमणि पंडित
[68]
Page #2
--------------------------------------------------------------------------
________________
मेरुरत्न तणां पद-कमल तूसइं तु कुरव-पांडव-तणा युद्ध-तणी लव-लेशमात्र संखेपि वर्णना कीजइ 1 (४७) (३)
वागुवांणि पय लागी वीन, जोडि बेउ नामी सिरु नमुं ।।
देहि माइ मझ वांणी निरमली, कवित एह करिवा मझ मनि रुली ॥ (४७) (४)
मेरुरन-गुरु-ने पगि लागुं, कवित एह करिवा मति मागुं । झूझ-नी परि जिसी हुं जाणुं, माहरी गति-लगइ सु वखांणुं ॥ (४७) (५)
उत्तरकुमार विजय करीने विराटनगरमां पाछो आवे छे त्यारे तेना पिता तेना शौर्यनी प्रशंसा करे छे. तेना प्रत्युत्तरमा; उत्तर जणावे छे के ए पराक्रम बृहन्नलानुं छे. ते पछी पत्र ७०ना पाछळना पृष्ठ उपर लहियाए आपेला क्रमांक ४१ पछी नीचे प्रमाणे कर्ताविषयक नोंध छ :
छंद घटा सरसति-सामिणि माइ पाय-पणांम भाविहि किज्जइए । मागेसु निरमल वांणि अविरल तीह लाहू लिज्जइए । जइ किमइ तूसइ माइ सरसइ ऊपजइ तिसु मइ घणी नरवर-सु-पांडु-नरिंद-नंदण-गुण-सुवन्नण रढ घणी ।। चंद्रगछ-राउ स तवह पक्खह नामि कुमइ पणासइए । सांमली सरसइ विरुदु वहइ वांणि सुमइ उल्हासइए। पउम जिम वयण-विकास अणुदिणु अहिणवा गुरु गोअमं गुण भूरि सिरि जयचंद-सूरि गुरु जोडि कर नितु पय नमुं तस सीस मामट-साह-नंदण कवण जगि तस उप्पमं । सीलवइ-नींनादेवि-उरि सरि रायहंस अणोवमं । सोभाग-सुंदर जगह मणहर वांणि-अमीअ सु जलहरं गुणि सीलि निम्मल कंति-जलहर मेररयण-मुणीसरं
(पाठयं० मुणिवरं) वर विणय लावण कला बुहुतरि सयल सुय परमाणयं । एगार अंग सु चऊद पूरव तत्त नवह वखाणयं वादीअ-विहंडण-मांण विज्जा-सयल-परम-निहांणयं
[69]]
Page #3
--------------------------------------------------------------------------
________________
1
व्याकरण-लक्खण-छंद-गुण अहिंनाण- केवल नांणयं ॥ रोहिणीअ - वर आसोअ - पुण्णिम - मयंक जिम मुह सोहइए वक्खाणि वांणि सुदेसणा- रसि सविअ - जण मण मोहइए । निग्गोअ - नरय - विआर चउविहि धम्म - भेय सवि जांणइए || मय-गव्व-कोहकसाय - लोह रिआसना नवि आंणइए जय मुहि हुई लख जीह जीह जीह लख वागेसरि वागेसरि सवि मणह भावि जस, दिई तूसी वर । सागर कोडाकोडि जगिहि जगि जे नर जीवइ नवि आहार निहार जास नर नींद्र न आवइ । सिद्ध जिम पउम - आसणि रहइ केवलि लबधि स ऊजमिहि । इम भणइ वनु सवि मेररयण - गुण सोई नर वण्णवि नवि सकहि
जय मुणिवर मेररयण तूसई तु सवि कला लहुं लीला सहि
भाषा, शैली वगेरेनुं स्वरुप जोतां १५मी सदीनो अंतभाग रचनासमय तरीके लई शकाय आ बालावबोधनो कृष्णजन्मथी कंसवध सुधीनो खंड ( पत्र १०ख थी १५ ख ) में संपादित करेल कीकु वसहीकृत 'कृष्णबालचरित्र' (१९९२) मां परिशिष्ट रूपे (पृ. ६२) प्रकाशित कर्यो छे.
ओं नमः श्री नेमिनाथाय ।
गिरनार - गिरिशृंगे स्नानं गजपतेः कुंडे
कासमीर-पुर-मंडणी
गुण गाएवा पांडु-सुअ पहिलं अवझाउर - नयर मुरदेवि-नंदण नाभि-सुअ
नमः (? नत्वा) श्रीनेमिनं जिनम् । कृत्वा पापः प्रमुच्यते ॥ (कुरु वंश)
पणमीअ सरसइ - पाउ । मझ मनि लागु ढाउ ॥ आदिनाह तिह राउ | पणमई सुर नर पाउ ॥
[70]
Page #4
--------------------------------------------------------------------------
________________
परमेसरिम-सुह मेल्हि करि अंगीकरिउं चारित्र । राजि ठवी परदेस भड अनु अनुक्रमि सु पुत्र ॥ विहिचीअ दिन्हा देस सु जेह जिसा पोसाइ । भरह-खंड नांमिइं भरह तिहुयणि इम पभणाइ । कुरुराजा कुरुखित्ति हूअ मोटउ मही-नरिंदु । सर्गि मृत्यि पायालि पुरि जाणइं इंद-फुर्णिद ॥ तिणि संतांनि अनेक निव अवतरीआ कुरु-देसि । हत्थि-नामि हथिणाउरह सुरवर-तणइ निवेसि ॥ संति कुंथु अरनाथ जिण हथिणाउरि अवतार । धम्म-चक्कवय चक्कवइ जिण-पय नितु जोहार ॥
(शांतनु-वृत्तांत) वलि तिहां राजा सोम हूअ सोम-वंस सुपमाण । अतिबल पूठिइं अवतरिउ स्यांतन-राउ सुजाण ॥ हथिनाउरि वलि अवतरिउ सबल स्यांतन-राउ । सोम-वंश-कुल-मंडणु अरि-सिरि रोपइ पाउ ॥ धम्मवंत धुरि तेह तु निम्मल-कुलि निकलंक । पूअ-भव-पसाउलइ थिउ पय पय सकलंक || वद्यण विलागुं पापमइ नितु आहेडइ जाइ । निरपराध मृग मारतु कांणि किसी न कराइ ॥ धम्मि धांमइ धूसट पडइ । विरलु जाइ कि वार । -ण दोइ लिग्नि लगाडतु पणि किवार दस-बार ।। एक दिवस उत्तावलुं पल्लांणीउ पवंग ।। गयु महावनि इक्कलु. पिक्खवि जूथ कुरंग ॥ भुइं छांडी मृगली मृगिइं बलवइ चूकु बांण ॥ वल्लीअ-वणि मृगलां गयां . विहि-वस-तणइ विनाणि । विलख-वयण राजा हूउ गयु आगेरइ ठाणि ।। पिक्खवि वण रुलीआंमणुं नंदण-वण-समतुल्ल । विलसई फलि फलिआ तरु महमहंति अइ-फुल्ल ।।
१०
[71]
Page #5
--------------------------------------------------------------------------
________________
कोइलि करई टहूकडा जांणे वसंत अवतरिउ तिहां रिसहेसर - जिण - भूअण डंड - कलस सोवंण्णमइ आदेसर जोहारि करि दीठु एक अवास बलि
घोड़उ बंधिउ बारणइ भुई छुट्टी गिउ सातमी
भमर करई झणकार । कि मलय-गिरि अवतार ॥ अइ मणहर उत्तंग | बिंव रयणमइ जंग ॥ सुंदर सइतु थाइ । तिणि राजेसर जाइ ॥
नरवर माहि पयट्ठ ।
कुमरी - विंदति दि ॥
( गंगा - वृत्तांत )
भमर - पलंगह ऊतरी जांणे किरि जगि त्रीय- रयण विनु विवेकिहि साचवइ ओलखाण - विणु तस चरिय पूछीअ कहि सुंदरि किसिउं ओलखांण नवि आज धु ( ?
)
।
ऊठी एक सखी कहइ वेयव-गिरि सुरयण- पुरि जोवण - भरि पुहुती जिम बुल्लावी बहु- नेह भरि कहि-न वत्सि तू कुण गमइ परणावीअ बहु रिद्धि दिउँ कर जोडी कंन्या कहइ कहिउं करइ न जि माह पूछिया राइहिं राय- सुअ कोइ न परणइ ए कुमरि निवडुं जांणी एह वण कारीअ आदेसर - भूअण हव ए कुमरि ईहां रहइ
कुमरि एक कर जोडि । नयणि न दिसई जोडि || रा रुलीयाइति थाइ । वात हिअइ न समाइ ॥ एवड विणउ करंति । हुं परि न परीछंति ॥ सांमी सांभलि वात । जंह - राउ इह - तात ॥ बइठी पीअ - उच्छंगि राइहिं मन - नइ रंगि ॥ मण-वंछिअ भरतार | हय गय घण परिवार ॥ वर नत्थी अम (? म्ह) ह रेसि | ते वर मई मन देसि ॥ कही कुमारि - नी वत्त । राणु राउत || ईहां रचिया आवास । आदेसरह आस ।। कर निरंतर पुण्य ।
[72]
२०
२५
३०
Page #6
--------------------------------------------------------------------------
________________
पणि जे को वर परणिसिइ
इणि संसारि न एह सभी
तो हुं जांणुं धन्य ॥ कन्या इसी सुचंग । गरूउं नाम सुगंग ॥ ईहां पधारइं राउ ।
गुण करणी निम्मल सुमइ
बीजा त्रीजा टी ( दी ? ) हडा बोलावई एह कुमरि-नई ईहां राजन आविउ हतु तिणि कंन्या देखी करी मणिहिं खेउ राजन म धरि पुंण्य - उदय इह आवीआं इम कहतां तिणि महावणि आविया घण घंटा - रवि रहवर हथीआरहं भरिया जांणे किरि चक्कवइ - दल इम करतां वेअड्ड- गिरि हरखिउ देखीय सेण बहु राजा-स्यांतन भइ जे तम्ह मनि छइ ते वचन जइ लोपुं वाचा किमइ अवगिणि जिउ (?) उ गंगा मंडलीअ मंडलीअ मिलि ass महोत्सव तिहा कीड रा पुहुत्तु पुरि आपणइ हथणाउरि पुरि पाणि जं गंगा - रांणी कहइ वाच न चूकई गंग-वर गंगा गंगावर - सरिस पुण्य-पसाइहिं केतले
* आ पंक्ति अने पछीनी पंक्ति हांसियामा उमेरेली छे.
[73]
संभालइ वण - ठाउ ।। साथि इक नेमित्त । संभाली इक वत्त || म करिसि कय संताप । गलीअ गयां सवि पाप ॥ मलपंता मातंग | बहु पाखरिया पवंग ॥
निर पायल असवार । कोई न लाभई पार ॥ पहुतु राजा जंन्ह । कुरुवइ रा-स्यां तंन ॥ हरिषिरं करु विवाह | * तिणि मझ दक्षिणा बाह || तु मझ एह ज डंड । सुमइ बुल्लइ इम बलवंड ॥ वेअड्डू - गिरि-सनाह । गंगा-तणउ विवाह || सरिसी राणी गंग ।
उत्सव हुआ अति चंग ॥ तं तं राउ करंति कहिउं स ते पालंति ॥ सुह भोगवइ समान । दिणि उपनुं ओधांन ॥
4
३५
४०
Page #7
--------------------------------------------------------------------------
________________
५०
मोय मणि मं(?) डोहला करइ स गंगादेवि । जांणइ गंगा-तडि जई मुणिवर-पय पणमेवि ॥ गयवरि चडि रायह सरिस गयपुरि-चेत्रप्रवाडि । जिणहरि जिण-पूजा करुं पूरं मणह रहाडि ॥ संति-कुंथु-अर-भूअणि जई र, ति रास-विलास । अभय-दांण दीजइ जगिहि तु पूरई सवि आस ॥ सुहिणंतर साचा लहइ जाणइ मण-नइ रंगि । सीह-तणुं बाचडुं सींह देखइ नीअ उच्छंगि । मेरह ऊपरि महि करें छत्र-तणइ आकारि । जई (१क)राजेसर वीनविउ प्रीअ वीनती अवधारि । मणह रंगि राजा भणइ संभलि देवि सुवत्त । कु संति-कुंथु-कुल-मंडणु तउं जनमेसि सुपुत्त ॥ धम्मवंत गुणवंत अति रूपवंत सुविशाल । बलवत्तर सूरु सधर चउपट मल चउसाल ||
(गांगेय - वृत्तांत) नवइ मास अपरांति नव दिण रयणी अद्धेउ । सहसकिरण जिम उदय-गिरि तिम जनमिउ गांगेउ ।। दीवा सवि नित्तेज गिया बालक-के तेउ । सोल-कलाधर भालीयलि सोहइ सिरि गांगेउ । घरि घरि गूडीअ ऊछलीअ तोरण वंदरवालि । घिई ऊंबर घण सीचीअई माणिणि-तणइ झमालि ।। दीजई दांण अणेग परि कणय रयण मणि अंण्ण । जे उत्सव गांगेय-जनमि कहि ते जाणइ कुंण ||
चउपई हथणाउरि जनमिउ गांगेउ उत्सव कही न जाणुं तेउ । केंद्रीउ-वृहस्पति थाइ ग्रह पंच भला ऊंचइ ठाइ || जिणि थानकि गुरु तीणई राहु राजा भणइ करउ उत्साहु । जे जोसी जांणई सुअ-भेउ नाम परठिउं तेहें गांगेउ !!
[74]
Page #8
--------------------------------------------------------------------------
________________
कलपतरु जिम वाधइ कुमर गांगेय-तणा गुण निम्मला
कय जिम बीज - चंद कय अमर । दिणि दिणि जास चडंती कला ॥
वलि कित्तावा (१) सुरपुरि गया राइ अहेडी बोलाविया । ते आविया किहि ले कृतिरा रिमझिमंति पाए धूवरा ॥ हवं बोली
स्यांतन- राजा - तणइ राजि राजा - तणइ आदेसि गजेंद्र गुडीअई छई । एक मयगला मद्यपान करावी करावी मदोन्मत्त कीजई छई ॥ तुरंगम पाखरीअइ छं। एकि तुखार तणी खुरी लोह- पात्रि जडावीअई छ । अनेक महारथ सज कीजई छई । ते (हिं) भिडमाल - प्रमुख आउध भरावी अई छई ॥ . कुंण कुंण आउध ? भलां भिंडमाल, एकाधीआ करवाल । जम-तणी जिह्वा तणी जिसी कटारी, काला कंकलोह - नी छुरी ॥ जिसिउ वीज- तणु झात्कार, तिसी तरूआरि ।
एक मुहर, जे थड (घड ? ) नींपजइ लोह - तणे भारि ॥
एकि बोलीअई पय, जिसी केसर - स्यंघनी हुई चपेटा ।
कोदंड, धनुष, तीर, तर्कस, तोणीर, भाथा । षखंड पृथ्वी - तणा साधक खड्ा ॥ पाशु, परशु, फुरी, गोफण, जोड, कमांण, सब्बल, सांगि, सेल । कुंत, लकुट प्रमुख इसां छत्रीस डंडाउध 1.
तेहे रथ भरावीअई छ ।
इसी सजाई देखी देवी गंगा ससंभ्रांत हुई अछइ । ए एवडु आरंभ - संरंभ सिउ नीपजइ बरी ( ? ) ॥ वइरी केऊं मलिया जांणीअई नही । परच क्रागम-तणी वार्त्ता कह नही । अकस्मात ए गय- नइ किहां ऊपरि सजाई ?
इस प्रस्तावि केइ एक प्रधान पुरुष राणी पूछवा लागी छइ । ते कहई छई, मात, सांभलुं वात । ए राजाधिराज महामंडलेश्वर || एह-नई बालापण पापरिद्धि-कर्म्म आखेटक नउं व्यसन छइ । तम्ह परणियां पूठि एतला दिन वीसरी गिडं हतुं । कुणहि एकं व्याधि मृग-तणुं आमिष्य आंणी भेट कीधी हती ।
५८
[75]
Page #9
--------------------------------------------------------------------------
________________
ते देखी करी वली आखेटक-नुं व्यसन सांभरिङ । ते एते आखेटक-नी सजाई हुइ छइ ।
चउपई तं सांभलि गंगा-मनि दाहि ए तो मोटी मझ असमाहि । जं ए राउ आहेडु करइ दीधी वाच न ते मनि धरइ ॥ कर जोडी गंगा वींनवइ सांमी तुं मोट् महियवइ । आखेटक-नउ सिउ संताप जीव-तणु वध पहिलं पाप ॥ ६० जीवि वधारिई जईअइ सम्गि जीव वधिइं जाईअइ नगि । जइ किरि माह) कहिउं करेसि तु आहेडइ मन जाएसि || अपमांनी रांणी तिणि राइ ऊमरडी आहेडइ जाइ । गंगा-देवि विमासइ वात कीधी राइ वचन मझ चात्र ॥ प्रकटिउं एह राय-नउं अभाग एव मझ रहिवा ईह न लाग । पुत्र लेई पीहरि जाएसु दांण शील तव पुण्य करेसु ॥ गंगा चाली ले गांगेउ गईअ वेगि वेअड्ड-गिरे उ । जुहारिउ जई आपणु बाप भागु मनह तणु संताप ॥ गंगा दान पुण्य अति करइ विषय-सुख-वात न मनि धरइ । वाधइ कुमर तिहां गांगेउ मातुलि कन्हइ भणइ सवि भेउ ।। ६५ पढइ गुणइ सवि ग्रंथ अपार जांण्या नव तत्त-ना विचार । स्मृति वेअ आगम सवि पुराण छंद तर्क लक्खण सुप्रमाण । लखित पठित लग बहुतरि कला सीखी वलि करिवी करि तुला । खचर-कला विद्या-नी जगीस सरमइ दंडाउध छत्रीस ॥ जांणी विद्या बहुरूपिणी नाग-पास सीखी थंभणी । मंत्र अघोर नहीं जगि तेउ जे नवि लहइ कुमर गांगेउ || स्वगि मृत्यि वरतई जि पयालि ते जांणी विद्या तिणि कालि । देवि न दांणवि राणे राइ गांगेउ किणि नवि छेतराइ ॥ ६९
वली बोली गांगेउ कुमर अनेक विद्याधर-सिउ वाद-विवाद मांडइ । त्रिगि चाचरि चुवाटा हीडइ । अनेकि राज-कुमर-तणां मन रंजवइ । पणि धर्म-नुं आगर ।
1761
Page #10
--------------------------------------------------------------------------
________________
-
विश्वोपकार- करुण - दयामय - सागर | जैन-धर्म्म-रक्त । एक मिथ्यात्व - ऊपरि विरक्त । सत्य वार्ता भाखर । असत्य बोली न दाखइ || धुरलगइ ( १ ख ) स्पंघ - नां परि(?) क्रम । विद्या- कला - ऊपर उपक्रम ॥ जांण- वेता भरह- वेता सोभाग- सुंदर । जांणे किरि को एक देव-नु कुमर || देव भगत, गुरु- भगत, संघ - भगत, माता- भगत, पिता- भगत ॥ पात्र कपटंतर जांणइ । धर्म्मवंत वखां || साधु प्रसंसइ । दुष्ट रहई सिख्या दिइ । छल-छदम न गमई । जूइ न रमई | अखाद्य न खाई। अपेउ न पीअई || स्त्री संग न करड् । अहंकार न करई ॥ पणि जेतलु केतलु अजुगति-नुं करणहार, कूड-कपट-नु धणी चोर-चरड, खूंट- खरड, सात व्यसन-नु सेवणहार, तेह - नई सिख्या - दान दिइ ॥ तिणि करी अनेक विद्याधरनां कुमर- नई अणगमतु थिउ । महा-दुर्दात किर विद्याधर - ना कुमर वैभाष्य बोलई, गालि दिई, अकुलीन कहई । ए भूमि - गोचरु बोलीअई जे (? जइ ) सकुलीन हुई ते मुंहसालि कांई रहिसिई ॥ इसी वार्त्ता सांभली सांसहइ नही । मुहकम मारइ । सव - कहि रहई दुर्जेअ । तिणि करी गांगेउ - कुमर - ना ओलंभा आवई । पुत्र- तणा उपालंभ गंगा सही न सई । ते उपालंभ बीहती पुत्र लेई करी पर्वत - थिकी ऊतरी तिणिई जि वन- खंडि आवी वास कीधु । गंगा - नइ गांगेउ-तणे गुणे करी संत साधु श्रावक लोक घणा वसिया । तिहां सदा चारण श्रमण - महात्मा आवई । गरूई नगरी मंडांणी, चतुर्दस - योजन- भूमिका - प्रमांण । ते नगर- पाखलीआ गरूउं वन खंड बोलीअइ । सदापल वृक्ष । कुर्बक तिलिक अशोक चंपक प्रियाल साल रसाल तमाल किरमाल । प्रियंग पतंग नाग पुन्नाग । नालीअरि केलि फोफलिणि खारिकी खजूरी करणी जंबीरी नारिंगी बीजुरी राजादन अखोड बादाम ताल अंब जंबु प्रमुख अनेक शाड्वल वृक्ष पुष्पित मुकुलित । सदा फल - फुल्लि करी ते वन- खंड विराजमान, महा संशोभायमांन । पुष्पजाति वली राय-चंपक कणय- केतकी सुवर्ण मालती सेत्र जाइ ढूंढणीआ वेअल कुंद मुकुरंद मुचकंद माकुंद तेहने परिमलि करी मघमघायमांन । वली
--
सांगली सेलडी गूंडगिरी - तणा वाडा तेहे किसिमि द्राक्षा- वल्ली नागवल्ली - तणा मंडप
अक्ष- रस तेह - नी
ते वन- खंड -माहि नदी -ना प्रवाह । चतुर्मुख महा मनोहर कुंड वापी
[77]
शर्करा - रस नीपजई ।
शोभा ॥
Page #11
--------------------------------------------------------------------------
________________
कूप तडागि करी विराजमान । ते नगरी पाखलीआ चउ-फेर चतुर्दशयोजन-प्रमाण महा-वन बोलीअइ । स्वापद जीव भयंकर नही । हिरण रोझ सूअर झंकार ससा सीआल सूकां त्रिणां-नी चारि-ना चरणहार ते जीव-नां यूथ बोलीअइं । तिहां गांगेउ-नइ भइ करी व्याध वागरी भील पुलिंद दुर्बली को पइसइ नही । तिणि करी ते अभयपुरी नगरी कहीअइ ।
वली चउपई आखेटक-नु करि उत्साह पाटणि पुहुतु स्यांतन-राउ । गियां रांणी गंगा गांगेउ विखवादिउ मनि राउ असेउ ॥ ७० जे राजनुं सार सा गंग ते पीहरि गइ ले सुअ चंग । तिणि संतापि राउ नवि जिमइ अवर विलास सुख नवि गमइ ॥ वात न गोठि करइ संलाप गति दिवस तेह जि संताप । इक वाचा चूक हुं आज तीणि विणासिउं सघलुं काज ॥ इम नींगमियां वरस चउवीस हूउ वली राजा स-जगीस । आहेडा-नुं वसण न जाइ गयवर वली गुडाविया राइ ॥ गयवर गुडिया तुरी पाखरिया सवि राउत संनाहिई वरिया । कूड-पास सवि ले समदाउ वली आहेडइ चालिउ राउ | मारइ मृग्घ अहेडु करइ पाप-वसण क्षणु नवि वीसरइ । जे हूंतां वन-खंड अरांम हिरण-तणां नीठाडियां नाम ॥ एक दिवस नवि पांमइ मृग्य तीणि करी अति हूउ विरग्ग । चिहु दिसि चर पाठवीआ राइ जई जोउ मृग छइ किणि ठाइ । इकि आवी राजा वींनवइं संचलि राउ बहू मृग अछई । इक वन-खंड न लाभइ पार हिरण जीव तिणि अछई अपार ॥ ७७
वली बोली इसी वार्ता सांभली राजा स्यांतन सहर्षित हूउ छइ । ते वन-खंड-भणी पवरसि(?) पूरी चतुरंगी सेना, लेई चालिउ छइ । जेहई गांगेउ-ना वन-खंडमाहिला गमा संप्राप्त हूउ, मुहर-थिका व्याध वागरी हणि हणि मारि मारि करिवा लागा छई । जे घोघर चूंनिरा कूतिर ते मेल्हीअई छई । तेह-ने पडसद्दे बापडा मृगला मृगली भयभीत थिका तरल-लोचन पुलायन करिवा
[78]]
Page #12
--------------------------------------------------------------------------
________________
लागा छई । केहे-ई एके कर्मकरि मजूरि आधी गांगेउ वीनविउ । अहो कुमर, एतला दिवस ए वन-खंड-माहिला गमा व्याध लब्धक वागरी अहेडी कूतिरा न दीसता, आज तेहे करी वन-खंड सघलंअ-इ दक्षिण दिसिइ भरिउं पूरिउं दीसइ छइ, अनइ वली गज रथ तुरंगम पायक तेह-नुं पार नथी लाभतु । इसी वार्ता सांभली गांगेउ-कुमर भृकटी-भीषण हूउ छइ । दिव्यमइ रथ एक सज करी छत्री डंडाउध भरी पूरी एकांग वर वीर-चालिउ छड् । स्यांतन राजा-नी सेना माहि आविउ छइ । गांगेउ आवतु देखी जे राय-ना महा सुभट हूता ते सवे धसमसी पाछा आव्या । राइ स्यांतनि बोलाव्या । ते कहिवा लागा छइं । महाराज, महारथी एक आवइ छड़ रथारूढ थिक । पणि महा-शूर वीर पराक्रमी जिसिउ काल-कितांत हुइ । हिवडां (रक) नइ समइ तिसिउ दिसिवा लागु छइ, जिसिउ हेला-मात्र माहि कटक सघलाइनु कल्पांत करइ । वली आज्ञा देतु ज आवइ छइ । जि-को माहरइ इणि वन-खंडि माहरां पालियां-पोसियां मृगलां-प्रतिइं घाउ घालइ, तेह-नई तम्हारा राय-नी आज्ञा छइ । कहतां वडी वार लागइ । गांगेउ आविउ-ई-जि। सेना सघलीअ-इ राय-परइ जइ पइठी । राजा मुहवडि हूउ छइ । वली गांगेउ कुमर कहइ छइ । अहो राजन, माहरां मृग-प्रतिइं घातु मा घालिसि । माहरु वन-खंड-माहि म पइसिसि । भइ, सांभलि जइ कहिउं नहीं करइ, तु हेलांमात्र-माहि पाणी-ऊतार करिसु । राजा स्यांतन कहइ छइ । रे पतंग किटकमात्र, हुं स्यांतन-राजा जइ दीठु न हतु तु बाते-इ नहतु सांभलिउ ? मइं संग्रामांगणि अनेकि राइ-राणां-तणा घर ऊंधां घालियां छई । इसी वार्ता बोली राजा स्यांतनि कूचि हाथ धालिउ छइ । मूंछ वल भरिखा लागु छइ । हाथि कोडंड लेई करी बांण परिठिउ । आर्णके(?) पूरित । गांगेउ-कुमर-भणी बांण मूंकिउं । गांगेउ-नइ प्रतापि करी बांण डावउं जिमणुं वही गिउं । वली गांगेउ कहइ छइ । हास्य-वार्ता यली माणस थई रहे । मेघाडंबर-छत्र-तणी अनइ छत्रधर-तणी रक्षा करे |
वली चउपई गांगेउ बोलइ बलवंड करीयलि धरी धणह-कोडंड । गुण-नी मज्झि परिठिउं बांण ऊभा रहिआ जोअइ रा रांण ॥
179]]
Page #13
--------------------------------------------------------------------------
________________
आवइ बांण अपर कुण मात्र खडहडि पडिउ छत्रधर छात्र । बीजइ बांणि विद्या थंभणी मेल्हिडं सक्ल्ह-सेन-भड-भणी ॥ नवि लागइ नवि को मारंति भड थंभ्या टगमग जोअंति । क्षिप्र बांण मेल्हिउं वलि कुंअरि गई वीणि सब-कहि हुई कुपरि ८० रिणि रोसग्गल थिउ गांगेउ ते जाणिउ गंगा सहु भेउ । वेगि वेगि पुहुती तिणि ठाइ आवंती दीठी कुरि राइ ॥ तिणि आवती जुहारिउ राउ सांमी तम्ह हम नवि जसवाउ । ए तम्ह पुत्र कुमर गांगेउ गंगादेविहि भागु भेउ | वली कुमर-तडि गंगा गई ए ताहरु पिता सुणि भई । इम संभलि आणंदिहि चडिउ लोटींगणे ताउ पय पडिउ ।।
आणंदिउ राजा स्यांतन्न दिट्ठ गंग गंगा-नुं वचंन्न । गांगेउ आघु लहीअइ सिघ्र बलिइ सुअ साइं दीअइ ॥ आपणपुं धन वन मंनिइ माहरइ सुकुमर गांगेउ ।। गांगेवि दिठइ सवि
........................|| आंम तात तु मोटु राउ ताहरु त्रिहु भूअणे भडिवाउ ।। आज पछु ए परि मन करेसि खड खाता मृगला मन हणेसि ।। सेन-सहित सहु गयउं अवासि भोजन-भगति हुई तस-पासि । गंगा-नइ कुमरि गांगेइ अमीय-वयणि रा पडिबोहिइ ।। बार-वरस-नी एतइ सीम आखेटक लिवराविउ नीम । राइ उत्संगिहि ले गांगेउ मंनाविउ अति परिई करेउ ॥ मांनइ नहीं स गंगा-देवि पुत्त मोकलिउ माइहि खेवि । हथणाउरि स पुहुतु राउ गांगेउ-नु जगि जसवाउ ।
वली बोली राइ स्यांतनि गांगेउ-नां गरूआं चरित्र जांणी करी गांगेउ-प्रतिइं युवराजपदवी दीधी । गांगेउ-कुमर राज-नी च्यंता सघलीअ-इ करइ । साधु पालइ, दुष्ट निग्रहइ । पणि रात्रि-दिवस बाप-नी भगति करइ । आगे-ई जिम श्री रामचंदि नइ लक्ष्मणि कीधी ।
[80]
Page #14
--------------------------------------------------------------------------
________________
वली चउपई ( सत्यवती प्रसंग )
एक दिवस वलि स्यांतन- राउ जमणा - तडि दिठी इक कूंअरि यह कूंअरि बोलावी वली कुमरि भणइ सांभलि मझ वात तीह - रई धरम - तणु मनि भाव विसु पायकु लीज नहीं
राजा भणइ सुणु तम्हि वात धीअ तम्हारी दीठी अम्हे राय - पाइ बेई जण पड़ी सालि दालि घी जे आहरई जे वसई पूठि-नी पवंग जह - नइ घरि गंग गोरडी जइ अति आदर करिसिउ तम्हे जई कि वार ए तम्ह घर वासि जे एह - नइ पुत्र जनमीअई गांगेउ राज- तणउ धणी
-
वली
1
ईसी वार्ता सांभली सत्यवती - नुं रूप देखी करी राजा अनुराग -चित्त हूउ छइ । जइ पोतइ भाग्य हुइ तु ए कंन्या-नुं पांणि ग्रहण करूं । ते नावडा बेडी - वाहा - नुं घर - मंदिर पूछी बेडी - वाडा - नइ घरि गिठ छइ । बेडी - वाहु सांम्ह ऊठिउ । प्रणांम नींपजाविउ । आसण - बइसण मांडियां । राजा बइठु । नावडु नावडी हाथ जोडी ऊभ रहियां कहई छ। स्वामिन ए कुष वार्ता ? करीर - नइ गृहांगणि कल्प वृक्ष आविउ ?
वली चउपई
९०
तिहां गयु जिहां जमणा - ठाउ । रूपवंति बोलती चतुरि ॥ कवण - तणी धीअ कां एकली । अछइ नावडु माहरु तात ॥ तस आदेसि वहावुं नाव | सत्यवती हुं नांमि सही ॥ बोली
९२
माहरां वचन म करिसिउ चात्र । ते मझ घरि परणावु तम्हे ॥ भणइ नावडु नइ नावडी । खल-नी साद्र कांइ ने करई ? | तींह नर राखिभ - सिउं कुण रंग ? । ते नर नवि परणई नावडी ॥ तम्ह दीकरी न देसिउं अम्हे । विषइ - सुख भोगवइ विलासि ॥ तम्ह पूठिई ते राजि न ते बापडा रुलई रेवणी ॥
९५
थीअई ।
[81]
९७
Page #15
--------------------------------------------------------------------------
________________
वली बोली
तेना वडां - तणी वार्त्ता सांभली राजा स्यांतन विच्छाय हूउ छइ । मनइमाहि विमासिवा लागु छइ । ए बापडां साचीअ - इ जि वात कहई छ । (२ख) जींह- नइ गांगेउ सरीखु बेटु हुइ, तां बेडी - वाहा - नी बेटीनां बेटां- नई राज न हुई । मोटा राय - ना बेटा नीच कर्म्म करता लाजई ! एक माह मुहत जाइ । बीजुं तीह - नुं इ मुहत जाइ । एह कारण इह - नई लाभ कांई न हुइ । राजा कालुं मुह करी पाछु वलिउ ।
श्लोक
कूपच्छाया सरंग धूली च ( ? ) । भाग्यहीन - मनोरथाः ॥ वलिउ जांणे किरि सीकोतरि- छलिउ । मषी - वर्ण दीठु गांगेइ ||
कय पर - चक्रागम थिउ अगालि लोपी आण किणिहि सीमालि ।
१००
अ- भगति कइ हूई माहरी जां राय- नुं न लाभई मंत्र मंति अमायत पूछिया कुमरि गयु नावडां-तणइ अवासि भणइ नावडु नइ नावडी आगे अम्हि अणमांनिउ राउ मन-नी वात सवे वलि कही वली वात सांभलि गांगेउ जई किवार राजसन पडइ समरी -: - गलइ छाजइ नवि हार सावधान सांभलि एतलुं
वन- कुसुमं कृपण- श्रीं एतानि विलयं यान्ति स्याम वणि मुहि राजा बीजइ दिवसि सभां बइसेइ
कइ रांणी गंगा सांभरी ॥ तां मई नवि करितुं भोजन । जांणि वात सवे तिणि स-धरि ॥ करइ वीनती तीह बिहुं- पासि | धीअम मागिसि भइ अम्ह तणि ॥ हव तम्ह मागेवा नवि ठाउ । रा दीकिरी न देसिउं सही ॥ इक अकुलीणां अर्छु अम्हे उ । किम कारेली सुर-तरी चडइ ॥ किम नावडी राउ भरतार | झूझिया - पांहइ लूविउ भलुं ॥ वली बोली
नावडां- तणां क्वन सांभली गांगेउ--कुमर कहइ छ । भई सांभाळ वात । जां कांई हुं माहरा बाप - नु मनोर्थ पूरी न सकुं, तां कांई मझ भोजन करिवा नीम । वली जे तम्हे वार्ता कहु छु, ते वात सघलीअ - इ साची ।
[82]
९८
१०५
Page #16
--------------------------------------------------------------------------
________________
पणि एक वात माहरी साचीअ-इ जि सांभलु । जइ कि-वारं सत्यवती-नुं पाणि-ग्रहण राजा करइ, तु सत्यवती माहरइ साचीअ-इ जि माता । गंगापांहई अधिक रात्रि-दिवस सेवा करिसु । वली सांभलु । जे सत्यवती-ना पुत्र हुसिइं ते माहरइ लुहडा-इ थिका राजा स्यांतन-पांहइं अधिक न गिर्खा,तु मझ-रहइँ तात-हत्या । वली सांभलु । राजा स्यांतन-पूठिई मझ-रई राज्यभार अंगीकरिवा नीम । सत्यवती-ना पुत्र रहई मई माहरइं हाथि-सिउं नीमि सहि राज देवू । वली रात्रि-दिवस जिम राय-नी सेवा करुं छं तिम सत्यवती-ना पुत्र-नी सेवा करिसु ।
वली सांभलु । जां कांई हुं जीविसु, तां मझ जीवता सत्यवती-ना पुत्र-- रहई को पराभवी नही सकइ, जइ बार चक्रवति नां दल आवई तुह-इ । तम्हे सत्यवती माहरा बाप-नई दिउ । एतली मझ-रहई समाधि करु ।
जि-वारं इसी प्रतिज्ञा गांगेउ करइ छइ, ति-वारं गिगनांगणि वैमानिक देवता रहिया जोअइं छइं । वली नावडु कहइ छइ । अहो गांगेउ-कुमर, सांभलि । जे वात तई कीधी, ते सघलीअ-इ साची । कि-वार अजी द्र चलइ, पणि ताहरी वाचा न चलइ । पणि एक अजी अम्हारा मनि वात छइ । ति-वारं गांगेउ कहइ छइ । जि-कांई मनि हुइ ते हिवडां कहे । नावडु कहइ, सांभलि ।
चउपई
एक वात सांभलि सतवंत जे कि-वि हुसिई तम्हरा पुत्त । तम्ह जीवतां म्रिज्यादं रहई तम्ह पूठिई ते किम सांसहई ? ॥ वलि गांगेउ कहइ सणि वचन आज-आघी माहरइ स्त्री बहिन । वली कहुं सुणि बीजी वात आज-पछी स्त्री सवि मझ मात ॥ धन गांगेउ-कुमर संसारि इसिउ न बीजु को ब्रह्मचारि । चउधुं व्रत कुमरि आदरी रन-वृष्टि इंद्रिहिं सिरि करी ॥ कनक-वृष्टि सुर करई ति खेवि कुसम-वृष्टि एकि करई देव । रंभा पउमा गवरि विसाल सई हथि कंठि ठवइ जइ-माल । सावित्री सोवनमइ थाल भरि मोती माणिक सुविसाल । रोहिणि शुची जि सुर-मानिनी वृद्धापनी करई कामिनी ॥ १०५
[83)
Page #17
--------------------------------------------------------------------------
________________
वली नावडु इणि परि भणइ ए मई धीअ दीधी तम्ह तणइ । एह-नु सांभलि मूल-समंध सत्यवती-ना गुण छइ अनुध ॥ भणइ नावडु अनइ. नावडी सत्यवती अम्हि लाधी पडी । एह अम्हारी नवि दीकिरि एह समी नवि सुर-सुंदरी ।। अम्ह लिइ तां वांणी हुई अगासि वागु-वाणि-नुं वचन विमासि । नयर रतनपुर रा रतनसेन जयवंतु सहस-कि(?क)र जेम ॥ रतनावली रांणी तेह-नइ सोल कला ससि-मुहि जेह-नइ । सत्यवती सुणि तीह-नी कुमरि वयर-भावि लांखी किणि अमरि ॥ इणि वातं हरखिउ गांगेउ भलु कोउं भागु तम्हि भेउ । साची एह वात सवि खरी सीप अनइ गंगोदक-भरी ॥ ११० सत्यवती तु रथि बइसार गांगेउ आविउ पुर-मझारि । वडइ महोत्सवि कीउ विवाह परणिउ गयपुर-पाटण-नाह ॥ राजा स्यांतन चीतवइ ईणि मनोरथ पूरिया सव-इ । माहरई काजि ब्रह्म-व्रत लीउं लोकोत्तरह काज इणि कोउं ॥ इणि मझ मन-नी भागी आधि इणि दीठई माहरइ मनि समाधि । हुं एह-ना गुण किम छूटेउ जग-वंदनीक ए गांगेउ ॥ राजा सुख (३क) भोगवइ समाधि अपर किसी नवि छइ असमाधि । सत्यवती जनमि सत(?) पुत्त चित्रांगद तस नाम निरुत्त । बीजु कुमर वली जनमीउ नामिहि विचित्रवीर्य ते हूउ । सुख भोगवीअ अतिहि इह-लोकि स्यांतन-रा पुहुतु पर-लोकि ॥११५ चित्रांगद बइसारिउ पाटि गांगेइ तिलिक कोउं निलाटि । तात-तणि परि सेवा करइ काज-कांम सधलां आदरई ।। गांगेउ बिहु-नु उवझाय कला सीखविया ते जग-माहि । जिम जिम तनि पोढेरु भयु चित्रांगद जयवंतु हूउ ।। कटकी-उपरि करइ अभ्यास लिइ लूसइ मारइ मइवास । चुपट दलि पर-भोमहि भमइ तिम तिम मनि गांगेउ गमइ । इणि परि सयल लीयां पर-खंड अपर बीहता दिइं घण डंड । इक सीमाल न मांनइं आंण तस ऊपरि मांडिउं मंडाण ॥
[84]
Page #18
--------------------------------------------------------------------------
________________
चित्रांगद -मनि छइ जं जिसिउं । सकल सेन चालिउ तेउ ||
बांधव - तणइ बोलाविउ नीलांगद - राउ
बेउ महा-भड रिणही चडिया गांगेउ - सिउं लीधा घाउ लीधा मयगल सयल तुरंग लोकां सविहुं दीधी धीर आविउ गयपुर - नयर - मझारि मृत्य -काज कीधां नवि घाटि राति - दिवस सेवा नितु करइ विचित्रवीर्य विवाहह रेसि जे देखु कंन्या गुणवंति
पणि गांगेउ न जांणइ इसिउं विणु पूछिया बांधव गांगेउ रोवांचिइ (?) जई वटिउ नगर तिहां नीलांगद राजा सधर । अंगोअंगि हूआ बिहु घाउ रिणिहि रहिउ चित्रांगद - राउ ॥ वयरि गांगेउ चालिउ चउपट रथि बसेउ । झूझ - तणु रे करि समदाउ || रावण राम तणी परि भिडिया । रिणि रहिउ नीलांगद राउ || लोधीअ लूसी आथि सपतंग | लेई देस- वलीउ वर वीर ॥ बांधव तणुं दुक्ख अपारि । विचित्रवीर्य बइसारिउ पाटि । सत्यवती नितु पय अणुसरइ । चर मोकलिया चिहु दिसि देसि ॥ विनयवंति जे वलि रूपवंति ।
-
बलि छलि ते कंन्या आणेसु विचित्रवीर्य हुं परणावेसु ॥
[85]
१२०
१२५
१२७
(चालु)
Page #19
--------------------------------------------------------------------------
________________
A
-कृत
मेरुरल - उपाध्याय-शिष्य - पांडवचरित्र - बालावबोध ('अनसंधान'-४, पृ. ८५ थी चालु ) (अंबा-अंबिका - अंबालिका हरण ) विचित्रवीर्य विवाहह रेसि जे देखु कंन्या गुणवंति
बलि छलि ते कंन्या आणेसुविचित्रवीर्य हुं परणावेसु ॥
(बोली)
चर मोकलिया चिहु दिसि देसि ॥ विनयवंति जे वलि रूपवंति ।
१२६
इस प्रस्तावि एकि चर कासी-नगर-थिका आविया छ । तेहे गांगेउ तणा पद कमल प्रणमी - नइ वार्ता कहई छई । सांमी, सांभलि कंन्या त्रिहुं- नी वार्ता । आव आव (?) अपसरा भांजी नइ अकेकी घडी छइ । कासीपुरी नगरी कासी - नरेश्वर राजा राज्य करइ । तेह- नइ कासीश्वरी पटरांणी । तेह- नइ त्रिणि कुमरि । त्रिष्ण-इ योवन संप्राप्त हूई छई । तिणि कासी - नरेश्वरि विश्व माहिला गमा अनेक राज कुमर जोआव्या । पणि तीह-नी जांमलिई वर कुण्हइ न मिलई । ति वार अम्हे इसिउं विमासिउं । ईहं त्रिहुं कंन्यानी जांमलिइ एक वर राजा विचित्रवीर्य छइ पणि बीजु वर नथी । ति वारं गांगेइ कहिउं । ते कंन्यानां नांम सियां ? चर कहई छई, सांभलु । वडी नांम अंबा, तेह लुहुडी-नुं नाम अंबिका, त्रीजी-नुं नांम अंबालिका । पणि देवां ही दुर्लभ । वली गांगेउ कहइ छइ । एक वार मगावीअई जइ मागी दि तु लिई । नहीतरि बलात्कारि लेई आविसु । चर वली कहई छई । सांमी, मागिवुं तागिवुं रहिउ । अत कांई सयंवरा-मंडप मंडाणुं छइ । महा-मनोहर सुवर्णमय रत्नमय पीठ । पित्तलामय रुष्यमय भीति । थांभा कुंभी सिरां पाट पीढ सुवर्णमइ ऊपरि रत्न - कंबल वस्त्र तेहना उल्लोच । चंद्रोआनां मंडाण । ति-वार- पूठिइं मणिमुक्ताफल- तणां झुंबिका। अनेकि किंकिणि-तणा झणत्कार। कोरणी - तणी वितिपिति । चित्रांमणतणी विचित्राई । जल-यंत्र मंडाणा छ । अनेकि मंचोन्मंच बंधाणा छ । राय राणा मंडलीक प्रति कुंकुम पत्रिका मोकली छई। राज कुमर-नी कोटि मिली छ । पणि जि काई आपणपा हूइ निरंतुं नथी । ते सत्य नुं कारण भणी | काई राजा विचित्रवीर्य बेडीवाहा- नी बेटी- नु बेटु । एत न मांन विचारीअइ छइ । सत्यवती - तु मूल संबंध न जांणइ ।
-
१२७
Page #20
--------------------------------------------------------------------------
________________
[102] गांगेउ कहइ छइ । पाधएं आपणपा निउंतरं नथी मोकलिउं ? तु जोए माहरा हाथ । तिम करुं जिम खाता नवि सरई । ति वारं वली पइला कहई छई । स्वामिन, लगन-आडा पांच दिन छई । ति वात सांभली अनइ गांगेइ चर पहिराविया । ऊठिउ गांगेउ। दिव्यमइ रथ एक सज कीधु । छत्रीस डंडाउध तेहे भरिउ पूरिउ । आपणपइं हाथि कोडंड धनुष लीधैं । तोला यमल भाला भाथा भीडिया । चालि कासी-पुरी-भणी ।
पांचमइ दिनि प्रभात-समइ गांगेउ रथि बइटु सयंवरा-मंडप-माहि पहुतु । राज-कुमर-ना लाख कोडि देखिवा लागु । आभरणि अलंकरणि परिवारि परवरिया। अनेकि सिंघासण मंचोन्मंचि बइठा नित्य प्रेक्षणीक करावई छई । इसि प्रस्तावि कासी-नरेश्वर-राजा मंडप-माहि आविउ छइ रांणी-सहित । त्रिंण्णइ [३ख] कुमरि प्रतीहारी-सहित आवी छई । ते कुमरि-ना सत्य-नइ तेजि करी राजकुमर-नां तेज आछां कियां । त्रिंण्णि-इ कुमरि त्रिहुं-ने हाथे वर-माला । मंडप माल्हती माल्हती प्रतीहारी मुहरं थिकी वर-तणां व्रणन करी वर दिखालइ छइ ।
छत्रीस लाख कनोज-देस-नु सांमी कनोज-राय-नु कुमर कर्ण । गमइ ? न गमइ । वली आघेरडी चाली प्रतीहारी । आ सात-लक्ष कर्णाट-देश-तणु स्वामी विपुलराजा तेह-नु कुमर जइतमाल । गमइ ? अत ना । वली आघेरडी चाली प्रतीहारी । आ नव-लक्ष कूकण-देश-तणु स्वामी बलिचंड राजा तेह-नु कुमर बलमित्र । गमइ ? अत ना ! वली आ नव-सहस्र नवसारी-देस-तणु स्वामी राजा रूपसेन तेह-नु कुमर ससिवदन । गमइ ? अत ना । वली प्रती० । आ साठ-सहस्त्र केकिंधा, तेह-नु स्वामी केतु राजा, तेह-नु कुमर सूर्यसेन । गमइ ? अत ना । वली प्रती० । आ बत्रीस-लाख मरहट्ठ-नु स्वामी महीपाल राजा, तेह-नु कुमर प्रद्योतन । गमइ ? अत ना । वली प्रती० । आ मालवा देस-नु स्वामी धरवीर राजा, तेह-नु कुमर प्रतापमल्ल । गमइ ? अत ना । वलो प्रती० । आ नव- सहस्त्र लाड देस-नु स्वामी लीलांगद राजा, तेह-नु कुमर चंद्रसेन । गमइ ? अत ना । वली प्रती० ! आ नव-सहस्र सुराष्ट्र देस, जेहनु स्वामी आनंददेव राजा, तेह-नु कुमर कर्णराज । गमइ ? अत ना । वली प्रती०।
आ पांचालदेस नु स्वामी पांचाल राजा, तेह-नु कुमर विद्युत्प्रभ गभइ ? अत ना । वली प्रती०। आ कच्छदेस-नु स्वामी कपोल (?) राजा, तेह-नु [कुमर] सुंदर । गमइ ? अत ना । वली प्रती० । आ नव-लाख सिंधु देस-नु स्वामी राजा सवेर
Page #21
--------------------------------------------------------------------------
________________
[103]
नु कुमर दधिपूर्ण । गमइ ? अत ना । वली प्रती । आ मरु - देस नु स्वांमी कृष्णदेव राजा - नु कुमर महीनाथ | गमइ ? अत ना । वली प्रती । अर्बुदाचलदेसनु स्वामी प्रहराज राय-नु कुमर राजस्यंधा । गमइ ? अत ना । वली प्रती० । दस सहस्र मेदपाट-नु स्वांमी सहस्रमल्ल- नु कुमर कलाकर्ण ! गमइ ? अंत ना । वली प्रती० | सवालख-नु स्वांमी मल्लराज तेह-नु अखइराज कुमर गमइ ? अत ना । वली प्रती । ऊंडडविहारदेस -नु स्वामी गंगाधर राजा-नु कुमर गंगदत्त 1 गमइ ? अत ना ।
तिहां थिकी त्रिणइ चाली अनइ गांगेड- नइ रथि आवी छई । प्रतीहारी कहइ छइ, साठि लक्ष कुरूक्षेत्र देस, ए तेह - नु स्वांमी गांगेउ बोलीअइ, जान्हवी गंगा-तणा उदर--नु ऊपनु, स्यांतन-राय- तणु पुत्र, सोभाग- सुंदर, असम साहसीक मल्ल । सहस्रकिरण सूर्य नइ प्रतापि, सोल-कला- संपूर्ण जेह - नी किरणावली । शूरवीर पराक्रमी, स्यंघ ने परिक्रमी । माता-पिता-नु भगत । गंगाजल - समान जेहना निर्मल गुण । वाचा - अविचल मर्यादा -मयरहर । सरणाईचिडाय - पांजर | दांनि दलिद्रहर, जाचक - जन - कल्पतर । एकांग वर वीर । वीराधिवीर बिरिदा चतुर्दश विद्या निधांन बत्रीस - लक्षणक । बहुत्तरि-कलाकुशल । कूर्चाल सरस्वती । गोत्र - गोवाल । बाल- ब्रह्मचारी । एह गांगेउ कुमर । जइ एह-ना पद कमल प्रामीअहं तु मनोवांछित वर-तणी प्राप्ति हुई । प्रतीहारी - ना ए बोल कहतां समी त्रिष्णइ कन्या ऊपाडी समकाल आपणइ रथि बसारी । वली गांगेउ कहइ छड़, भईओ ! कहिसि अणकहि छल करी गिउ । हुं कही कहावी जाउं । जेह ने खवे खाजि हुइ, ते आविज्यु । जेहनई पेट दुखतुं हुइ, ते आविजिउ । इस्या बोल कही गांगेइ हाथि धनुष लीधु । धोंकार नींपजाविउ । तिवारं घणा कुमर पलायन करवा लागा । नासता एकि अडवडी पडई छ । हाथ-पग अलगा हुई छई । जिम केसरी स्यंध - नइ नादि गजेंद्र गडडी पडइ ते परि सयंवर मंडप-माहि हुवा लागी छइ । चालिउ गांगेउ हस्तिनागपुर-भणी | तीह - माहि जे महा शूरवीर हता ते परस्परिडं कहिवा लागा । आपणपई जीवताइ आ एकाकी मात्र त्रिणिइ कन्या लेई चालिउ । वली कही कहावी - नइ । ति वार लाख राजकुमार ऊ ( ४ क ) ठिया । आपणे आपणे परिवार - सहित गांगेउ - ना रथ-भणी आवीआ । गलई वलिया रथ चउ केर वॉटिउ । बांण- नी धर धोरणि चलावी । पणि गांगेउ लगइ एकइ न जाई । पणि तुह
...
Page #22
--------------------------------------------------------------------------
________________
[104]
गांगेउ - नइ मनि दया - नु परिणांम । ति वार गांगेइ बांण मेल्हिउं ।
चउप
जव मांगेइ परठिउं बाण मणुअ बापडा कहि कुण मात्र मेल्हिउं क्षिप्र बांण गांगेवि कहि-नां नाक गयां कहि कांन कासीपति बोलाविउ राउ अम्ह कूं कुत्री नही मोकली कासीपति लागु तु पाइ ए त्रिणइ कंन्या तुम्हि वरु चालु हुं साथिई आवेसु आपिसु सवि मयगल तोखार गांउ - साथि थिउ राउ गयपुरि पाणि उत्सव - रंग विचित्रवीर्य परणाविउ राउ
अमर लोक छांडइ सुर-ठाण विण लागा मोडाविया गात्र वेणी-डंड गया सवि खेवि नास भड मेल्हि सवि मांम कहि तूअ करउं किसु हिव ठाउ हव जे तउ सिख्या दिउं
कर जोडी वींनती कराइ जं जं जाणु तं तं करु तिहा आवी वीवाह करेसु अरथ गरथ कोठार भंडार लोधा अपर सवे समुदाउ वरतिर वडउ महोत्सव - रंग पणि ते गांगेड - नु पसाउ पंच विषय सुहभर भोगवइ अनि कांई तेह जि आणंद पायक परिघु गय तोखार गुरु- देव-नी न जांणइ जुगति धरम नींम कांई नवि करइ नेह छुडि राउ दुर्बलउ देह
मनह तणा मनोरथ सवर विषय - सुखि लागु राजिंद राज-तणी कय न करइ सार वीसारी माय - तणी भगति गांगेउ मन-माहि न धरइ दिणि दिणि रमणि - सरिस घण श्रवण अंखि नासा हुई हीण तं जांणी जंपइ गांगेउ विषय - सुखि लागु एकंत धर्म अर्थ शिव-सुख - नुं ठांम एक कामि लागु मन रंगि सत्यवती दीधू उपदेस
गांगेउ-ने लागु पाइ
ली १३०
वचन- कला सघली थई क्षीण सांभलि बांधव साचु भेउ देखि देह - नु आविउ अंत त्रिहुं तनुं तई फेडिउं ठांम जाइसि मरी नींमिसहि भग्गि लाजिउ मनि कांई लवलेस च्यारइ बोल पतगरिया राइ
१३५
१४०
Page #23
--------------------------------------------------------------------------
________________
[105]
[धृतराष्ट्र-पांडु-विदुर-जन्म ] जायउ अंबादेविहि पुत्र
दीउ नाम धृतराष्ट्र निरुत्त कांई इक पुव्व-कंम-वीनांणि जनम-लगइ जायंध सु जांणि जि(?ज)णिउ अंबिका वली सुपुत्र धुर-लग पांडु-रोगि संजुत्त पांडु नाम दीधुं तेह-नई पांडु-रोग धुर-लग जेह-नई अंबालिका जि(?ज)णिउ सुत तेणि जाणीतु रांणे राएणि विदुर नाम दीधुं सुअ तास विद्या-कला-सरिस अभ्यास पंच पंच वउलियां जइ वरस गांगेउ बइठउ त्रिहुं सरिस काई इक पुव्व-नेह-इ(?)हिनांणि विद्या कला... भणावइ तांणि सकल-कला-ना हुआ सुजांण पोढा थिया प्राक्रम-परांण विचित्रवीर्य वीसरिउ उपदेस करइ पुण्य नवि कय लवलेस १४५ वली कांम सेवइ अत्यंत दिणि दिणि देह झुडी गई अंति खयन-रोग लागु जस अंगि विवनु राउ विलासि अणंगि मृत्यु-काज कीधां गांगेइ बोलाविउ धृतराष्ट्र गुणेइ वडु कुमर तुं वडु गुणे उ बइसि पाटि बोलइ गांगेउ धृतराष्ट्र भणि संभलि ताउ मझ राज्य-नु नहीं ए न्याउ हुँ जाचंध कहिउ धृतराष्ट्र पांडु-कुमर बइसारु पाटि पांडु-कुमर-रहइं दीधुं राज जांणे गांगेउ युवराज क्रमि ऋमि पांडु हुउ वृधिवंत तपइ राजि जिमि कमलिणि-कंत १४९
(धृतराष्ट्र-विवाह)
(बोली) जे विचित्रवीर्य-ना कुमार धृतराष्ट्र, पांडु अनइ विदुर, तीहना पाणिग्रहणचिंता गांगेउ-नइ मनि अपार हुई छइ ।
चिंता करु म चीतवु, अवर कु चिंतइ कांई। क्षीर पयोहरि जिणि ठविउ, बालक उदरि ठियाइ ॥
गांधार-देस, सबल राजा, तेह-नइ शकुनि बेटु । गांधारी-प्रमुख आठ बेटी, पणि आठइ अपछरा-समांना । केतलेई एके दिहाडे ते सबल-राजा दिवंगत हुउ । शकुनि राजि बइठु । पणि जे आठ बहिन छई, तीह-ना विवाह-तणी चिंता घणी । एक राज-चिंता । बीजी आठ बहिन-ना विवाह-नी चिंता । तिणि करी
Page #24
--------------------------------------------------------------------------
________________
[106} राजा शकुनि व्यग्र-चित्त दिहाडइ दिहाडइ दूबलु थाइ ।
बिंदुनाऽप्यधिका चिंता चिचा, थाइ (?) भवेत् तु मे मतिः । चिता दहति निर्जीवं, चिंता जीव-समन्वितम् ॥
एकदा प्रस्तावि राजा शकुनि निद्रां पुढइ छइ, सिपुनांतर-माहि सिउं देखिवा लागु छइ । देवि-एक देखइ, दीदीप्यमान देह, चलत कुंडल आभरण (४ख), देव-दुक्खित(?ष्य) वस्त्र । जिसिउ कांई तेज-नु पुंज हुइ । रूप सौभाग्य लावंन्य-नी धणीयांणी जाणइ हुंति ! (ति)णि जागविउ। राइ पगे लागी प्रणाम कीधु । मात, तम्हे कुंण । कहीउ । हुं तम्हारी कुलवति(? देवता) । तुं चितावन्त जांणी करी हुं तुझ रहई कहिवा आवी । ए कुमरि-नई वर-तणी चिंता म करिसि । ईहरई एक-इ-जि वर सिरजिउ छइ । शकुनि वली पूछइ छइ । मात, कहु-न ते कुंण 1 देवि कहइ छइ, सांभलि । हस्तिनागपुर पत्तन तिहां गांगेउ कुमर स्यांतन राय-नु बेटु जयवंतु वर्तइ, तैलोक्य - नमस्करणीय, बाल-ब्रह्मचारी, शूरवीर पराक्रमी । तेह-नु लघु भ्राता विचित्रवीर्य राजा दिवंगत हूउ । तेह-ना त्रिंण्णि पुत्र छई, धृतराष्ट्र, पांडु अनइ विदुर । जे धृतराष्ट्र छइ, जे जन्म-जाचंध छइ, पणि भाग्यनु धणी छइ । ताहरी आठ-इ बहिनहं रई विधात्रां तेह-इ-जि वर सिरिजिउ छइ । ए वात साचीअ-इ-जि । पणि जांणे तेह-थिका तझ-रई सखाईआ घणा हसिई ।
एतली वात कही-नइ देवी जिम वीज-नु झात्कार हुई तिम जातीअइ थाकी । शकुनि जागिर, जिहां देवि आवी हती तिहां पारिजातक-नां पुष्प-नु प्रकर देखइ । ति वारं सिपुनांतर-नी वार्ता साचीअ-इ-जि जांणी । राइ विमासण कीधीअ-इ-जि नही । चतुरंगी सेना द्रव्य-नी कोडि, अनेकि समुदाउ, आठइ कंन्या गांधारी-प्रमुख प्रधान पुरुष-रहई राजा चलावी अनइ हस्तिनाग-पुर-भणी चालिउ । आगलि थिका भट्टमात्र मोकलिया छई । तेहे गांगेउ जणाविउ । ते वात जांणी गांगेउ सुहर्षित हूउ । भटमात्र रहइं घणुं दांन दीर्छ । मोटइ विस्तारि गांगेउ सांम्हु चालिउ छइ । राजा गांगेउ आवतु देखी शकुनि रेवंत-थिकु ऊतरिउ गांगेउने पगे लागु । विवाह-नी वात जणावी । मोटइ महोच्छवि धृतराष्ट्र आठ कुमरितणां पाणिग्रहण कराविउ । शकुनि आपणि राजि पुहुतु ।
(पांडु-विवाह) वली गांगेउ पांडव-कुमर-ना विवाह-नी घणी चिंता करइ । इसिइ प्रस्तावि कुणहिइं एकं देसंतरी आगइ गांगेउ यादवेंद्र-नी वात जणाविउ छइ । हवं
Page #25
--------------------------------------------------------------------------
________________
कूंती - नी वात चलावीअइ छइ ।
[107]
( चउपई )
मथुरा - नयर वसइ सुविसाल जांणे सहसकिर (ण) अवतंस अणह-- ततु (?) आगर भर - पूर विस्तारि पणि बोली न सकेसु जांणे किर अमरापुर पवर नाम न जांणुं सविहुं तणां अंधविष्णु ठवि राजि लोकि राजि तपइ जिम सहसकिरण प्रतापीक नइ सवि सुचरित्र सूरवीर - पण पार न कोई नाम - पहइ अधिकुं परिणांम जेह - ना गुण जांणई सवि देव जगि जांणीअइ राइ - रांणेणि जाई तिसी न सुरसुंदरी एक जीभ ते मई न कहाइ कूंती जांणे रूप-निधांन सकल कला आपी उवझाइ राजा चिंतातुर थिउ तिमइ वर जो आवइ कुंती - रेसि
अति उत्सव हुआ पुर--ठाइ जोसी दीधुं कुंती नांम पोढी थई लेसालं जाइ जोअण- वेस पुहुत्ती किमइ चर पाठवीआ देसि विदेसि
राजा अतिहि मणिहि लवलइ कुंती जोगि न वर को मिलइ ( बोली )
राइ अंधगविष्णि वड्डु बेटु समुद्रविजइ तेडिउ छड़ जे महा-गुणे करी गंभीर, शूरवीर, पराक्रमी । सांभलि वत्स, कौंती महा-सरूप कंन्या । वली गुणे करी विशिष्ट । एह-ना मन-गमतु अभीष्ट वर न मिलइ । प्रच्छन्न-चित्तिइ मझरई घणा दिन हुआ जो आवता । ति वार समुद्रविजइ कहिउं आंम तात, ए कौंतीनुं रूप पट्टि लिखावीअइ । को एक आपणु चकोर पुरुष लेईनइ (५क) प्रिथ्वी - मंडल-माहि मोकलीअइ । जे अनुरूप वर दीसइ मोटा कुल-नु मोटा वंश - नु
-
गंगा नइ जमणा बिहु विचालि यदुराजा-नु मोटु वंस तेणि वंसि अवतरीउ सूर कथा एक बोलि लवलेस शौरि - नांमि सोरीपुर नयर शौरिराय - नइ बेटा घणा शौरिराउ पुहुतु पर- लोकि मथुरां राजा भोजगविष्णु अंधगविष्णु तथा दस पुत्र दस दसार ते भणीअई लोइ वडा - कुमर समुद्रविजइ नांम धरण पूरण लहुडु वसुदेव भोजगविष्णु - ars उग्रसेणि अंधगविष्णु-तणइ दीकिरी
१५०
१५५
१६०
Page #26
--------------------------------------------------------------------------
________________
तेह - नई दीजइ ।
ति वारं मोटु एक पट्ट कराविउ । पणि महा विशिष्ट वली कलावंत चित्रकर एक तेडाविउ । कौंती-ना रूप-नी चित्रामि चीतरिवा-नी वात जणावी । ति वारं चित्रकि कहिउं महाराज, कौंती - ना रूप-नु लवकेश एक सिउं कुणहि चीत्राइ छइ, जइ वृहस्पति आवइ तुहइ ? पणि तुहइ तम्हारडं आदेशि करी जिसिउं जाणिसु तिसिउ पट्ट नीपाइसु ।'
'तु नीपाई' ।
[108]
-
(चउपई )
आंण्या हींगलोअ हरीआल रस कीजइतिहां एकि रूपमइ कौंती भणइ रूपि अहिमांणि लिखिरं रूप सरसइ-आधारि कोरक - नामि पाठविउ दूत अंतर- गति आपिया अविभेउ पूरव पंथ फिरिउ नेपाल मरहठ सोरठ सहि नंमीआड कौंती जोगि नही कइ भूप कुणहि एक नैमित्ति विसेसि गयपुरि पाटणि गयु सुजांण गांउ सहि पिक्खीअ पांडु दीठउ विदुर अनुइ धृतराष्ट्र जिसिउ पांडु गुणि रूपिहि होइ नव- जोवण नव-नेह - गुणेणि वात जणाविउ तिणि गांगेउ गांगेउ तिणि बइटुं मंत्र मई ए दीढुं रूप मझ गमइ कुमर न बोलिउ कंन्या गमी कोरक पांडि करी अवलि वात कोरक - साथि जे जण जांण
पंच-वर्ण वानां सुविसाल वली नींपना एकि कनकमइ सकल शरीर देह - परमाणि जिसी अवर नारि न संसारि विद्या कला जि गुण-संजुत्त चालिउ कोरक ते पट लेउ अंग बंग नइ तिलंग डाहाल गूजर मरु मालव मेवाड सूरवीरपण गुणि अनुरूप कोरक वही गयउ कुरुदेसि राजपाटि कां रांणोरांणि
अनुपम रूप अनइ बलवंड अपर राय - सुअ सई साताठ तिसिउ अवर नवि दीसइ कोइ कोरक - नुं मन बइठु तेणि पट्ट दाखि भाखिया सवि भेउ पांडु - कुमर - रहई कहि उवतंत्र जइ ताहरु चित्त इणि रमइ ऊठिउ गांगेउ-पय नमी मेलि विवाह म करिजे चात्र कंन्या जोई करे प्रमाण
१६५
१७०
Page #27
--------------------------------------------------------------------------
________________
[ 109 ] सोइ मोकलिउ सोरीपुर-भणी वार म लाइसि कहीअइ घणी ते बेई सोरीपुरि गया अंधगविष्णु-राउ भेटीआ दस दसार-सहि कही सु वात पांडु प्रतिइं कुंती दिउ रात कूती राउ अछइ उत्संगि पांडु वान सवि गुणि मन-रंगि तु कुंती समरइ किरतार मझ इणि जनमि पांडु भरतार ते बेइ मोकलिया अवासि भोजन-भगति हुई सुविलासि जादव-राइ कही मन-वात म करु एह विवाह-नी वात ए वर कूती सिउ संजोग जनम-लगी एह-नई पांडु-रोग पांडु नाम लाधुं गुणि तेणि आगइ वात कही मझ केणि १७५ सूत मोकलिउ पाछु राइ हवडां अछइ विमासण कांइ पणि तोई कूती-रहइं मिलिउ मिली करी नइ पाछउ वलिउ कुंती वर जांणिउ ते सार पांडु टलत न करूं भरतार धात्री वात जणावी एह तिणि आशासन दीधी तेह गांगेउ-नु चर गिउ तिहां हस्तिनागपुर पाटण जिहां वेगिहि मिलिउ जई गांगेउ तिहां-तणु सहू कहिउ भेउ १७८
(बोली) चर कहइ छइ-सांभली, पइला मोटा राजाधिराज । पणि तुहइ आपणु वस . वखांणिउ । कुल वखांणिउं । वली तेहे कहिउं - जीह-नइ पूर्विज श्रीशांतिनाथ
प्रभु, श्रीकुंथुनाथ, श्रीअरनाथ चक्रवर्ति धर्म-चक्रिवर्ति हुआ हुई, ते घर, ते वर किणि मागिउं, किणि लाधुं ? पणि तांहि वडां विमासण छइ । वली सरूप कहावीअइ छ ।
(चउपई) नवि किंत्ररी न कइ चिंतरी एही नही अमर-सुंदरी इसी नारि अवर न सुणि भूप कुंती-तणुं अनुपम रूप (पख) कहइ पांडु तेह-नुं मन किसिउंजइ जांणइ तु कहि छइ जिसिउं बे कर जोडी ते चर भणइ कुंती कलत्र हुसिइ तम्ह-तणइ १८० खरीअ वात ए सवि जाणउ मझ-आगलि भागु तिणि भेउ सांभलि माहरी वाचा सार पांडु टलत न करु भरतार इणि वातं मनि हरखिउ भूप जाणिउं कूती-तणउं सरूप
Page #28
--------------------------------------------------------------------------
________________
[110] पांडु-कुमरि नवि लाई वार दीधु तास लक्ष दीनार पणि तोई मनि अति असमाधि जाणे अंगि विलागी आधि किणि दिणि कुंती परणिसु कहइ तनु पलंगि निशि-भरि नवि रहइ भोजनि रसि मनु मांनइ नही वावि सरोवरि न रमइ रही सुरभि सुगंधि न मनु वीसमइ नदी-तडा-तडि जई नवि रमइ
(पांडु वडे विद्याधरनी मुक्ति) एक दिवस पल्लांणि पवंग बाहिरि वणि जावा मन-रंग वेगि वेगि गिउ वनि उद्यांनि तुरिय बंधि पमरिउ आरांमि १८५ दीठु खायर-थुडि एक पुरख करड पुकारि देहि घण दुक्ख जडिउ निवड खीले लोहमइ दीठु खांडु कुमरि तिणि समइ ते देखी दुख थिउं भूपाल दिवस-माहि पुहचइ(इ)ह काल जनमिया कांई जिणिणि ते पुरख जे न सकइ भंजी पर-दुक्ख समरिउ संतिनाह सिरि कुंथु समरिउ गांगेउ गुणवंत माहरा मन-नुं चिंतिउ हुजिउ एह पुरख-नुं दुख भाजिउ एक-मनु गिउ तस आसनु खीलु तांणिउ ते लोहमु साहस-बलि सोइ नीकलि जाइपडिउ पुरुख महि-मंडलि ठाइ चेत-वेत नवि कांई तास अधिकु लेवा लाग सास जांणिउं मरिसिइ दिउं नवकार वारुं चेत किमइ जइ लगार १९० वाला-केरु करि वींजणु . तीणि वाउ कीधु तस घणु वलि नवकार-मंत्र-संकेत विसा सोल सिरि वालिङ चित मुद्रा पांणि दिखाडी तेणि कर ऊतारी लइ राएणि तस अभिखेकि नीरि छांटेइ गइअ पीड वेगिहि ऊठेइ पांडु-कुमर-ने लागु पाइ विनय-वचन बोलइ तिणि ठाइ कहि बांधव कुण दिउं अपमान तई मझ दी, जीवी-दांन उपगारह कीजइ उपगार ए नवि कांइ वडु विचार पणि तां तुं मनि अछइ सचिंत कहि मझ-आगलि भांगें भंति मझ वैताढ्य वास-नु ठाम विशालाक्ष सुणि माहीं नाम वेसासी विद्याधरि लीउ इहं आंणी अपाइ पाडीउ १९५ पुव्व-सनेहि निसुणि बलवंत इणि वनि आविउ भमत भमंत
Page #29
--------------------------------------------------------------------------
________________
२००
[1111 किहां वइताढ (किहां) ए रांन मझ तई दीधुं जीवी-दांन
विरला जाणंति गुणा, विरला विरयंति ललिय-कव्वाइं ।
विरला पर-कज्ज-करा, पर-दुक्खे दुक्खिया विरला ॥ हिव आपणपा बिहुं सनेह जेहु मोर अनइ वलि मेह एह नेह राखे हुए भंग अविचल प्रीति अनइ मन-रंग तुं तो राउ वसुह-विख्यात मझ आगलि कहि मन-नी वात जइ भांजी न सकुं संताप तु मझ कृतघन-केरु पाप
ददाति प्रतिगृह्णाति, गुह्यमाख्याति भाषते । भुंजयते भुंक्ते चैव, षड्विधं प्रीति-लक्षणम् ॥
(दोहा) पांडु भणइ बांधव निसुणि कहीसु कूती-वत्त मझ यादव-वंश जा न दिइ तिणि हुं अछु सचित तं सुणि विद्याधर भणइ एह जि मुद्रा लेह मनह मनोरथ परिसिइ मनि माणिसि संदेह इणि विद्या छइ थंभणी वमीकरण इणि होइ कज-सिद्धि अदृशीकरण अतुलाअ बल इणि जोइ इणि करि थिकी सहू नमइ राउल रा राजिंद जइ लवलेस सुकीअ हुइ संभलि पांडु नरिंद आपुं अगास-गामिनी विद्या हुं तम्ह-रेसि इणि मुद्रां अधिकी फुरइ हीडे देसि विदेसि
२०५ विद्याधर मुकलावि गिउ वलि आपणइ सुवासि मुद्रा पिहिरी राइ करि जोई वात विमासि
(पांडुनुं शौरीपुर-गमन)
(चउपई) विद्या-बलि ऊपडिउ अगासि गिउ सोरीपुर-तणइ निवासि रमलि-रेसि तिहां कूती (क) अछइ गयु पांडु तिणि वनखंडि पछइ इसइ सूर आथमिउ सु जांणि नव-पल्लव लेवा अहिनांणि धात्री गई माहि वन खंड अदृश न देखइ कुंती पांडु
Page #30
--------------------------------------------------------------------------
________________ [112] कूती धुरि जांणावी वात मझ वर पांडु नरेसर सरणि नहींतर कय संजय कय मरण आंम-तात नवि देसिइ (तिहां) माहरु मन-चिंतित वर जिहां धात्री कहइ स बुद्धि करेसु पांडु नरेसर वर तई देसु 210 सवि वात सुणइ छइ पांडु धात्री गई माहि वन-खंड नव पल्लव लेवा वन-खंड कुंती रही कयल-गृहि मंडि कुंती वली विमासी वात किहां गहिली नइ किहां सोमनाथ किहां सोरीपुर किहां कुरुनाह तात मांड किम हुइ विवाह डाभ-तणु तिणि कीधु दोर लांबु जाडु अतिहि अघोर चडि असोकि गलि घाली पास परमेसर पूरे मझ आस समरिउ महा-मंत्र नवकार हुजिउ पांडु मझ भवि भरतार चडि असोक-तरु-केरी डालि बंधि दोर कुंती तिणि कालि गलइ पास घालि सज थई नीचुं मेल्हिउ क्षणि नवि मूंई पांडु-राइ खग्गिहि सिउं दोर मंत्र जपिउ नवकार अघोर 215 कुंती पडी धरणि थई अचेत ले उत्संगिहि वालिङ चेत जांणइ अपर पुरुष-नइ फुरिसि हव जीवीनइ किसिउं करेसु घडीअ एक-दोइ चडीउ चंद कुंती पिक्खवि पांडु नरिंद नामांकित कंकण बिहुं हाथि हरिखी हीअइ सुअक्षर वाचि पांडु भणइ म गिणिसि मनि भ्रति हुं ते पांडु नरिंदु कहंति इम करतां धात्री तस माइ आवी तिणि कदली-गृहि ठाइ दोठु पांडु ओलखिउ ति वार तां कुंती तूठु किरतार वेगि वेगि गांधर्व-विवाह कीधु कुंती पांडु-सनाह रहियां बेउ कदली-गृह-माहि रंगि रमंतां रयणि विहाइ लाधुं कंत-तणुं अति मांन कुंता-देवि हई साधान / 220 रयणि गलंती चालिउ राउ तिहां गयु जिहां गयपुर-ठाउ धात्री अनइं स कूता-देवि संपुहुती घरि कुसले खेमि कुंती-उदरि वाधइ संतांन तपइ कांति तस कंचन-वन मनह-तणा डोहला विसाल दांन-तणी मति अबला बाल (चालु)