________________
वली नावडु इणि परि भणइ ए मई धीअ दीधी तम्ह तणइ । एह-नु सांभलि मूल-समंध सत्यवती-ना गुण छइ अनुध ॥ भणइ नावडु अनइ. नावडी सत्यवती अम्हि लाधी पडी । एह अम्हारी नवि दीकिरि एह समी नवि सुर-सुंदरी ।। अम्ह लिइ तां वांणी हुई अगासि वागु-वाणि-नुं वचन विमासि । नयर रतनपुर रा रतनसेन जयवंतु सहस-कि(?क)र जेम ॥ रतनावली रांणी तेह-नइ सोल कला ससि-मुहि जेह-नइ । सत्यवती सुणि तीह-नी कुमरि वयर-भावि लांखी किणि अमरि ॥ इणि वातं हरखिउ गांगेउ भलु कोउं भागु तम्हि भेउ । साची एह वात सवि खरी सीप अनइ गंगोदक-भरी ॥ ११० सत्यवती तु रथि बइसार गांगेउ आविउ पुर-मझारि । वडइ महोत्सवि कीउ विवाह परणिउ गयपुर-पाटण-नाह ॥ राजा स्यांतन चीतवइ ईणि मनोरथ पूरिया सव-इ । माहरई काजि ब्रह्म-व्रत लीउं लोकोत्तरह काज इणि कोउं ॥ इणि मझ मन-नी भागी आधि इणि दीठई माहरइ मनि समाधि । हुं एह-ना गुण किम छूटेउ जग-वंदनीक ए गांगेउ ॥ राजा सुख (३क) भोगवइ समाधि अपर किसी नवि छइ असमाधि । सत्यवती जनमि सत(?) पुत्त चित्रांगद तस नाम निरुत्त । बीजु कुमर वली जनमीउ नामिहि विचित्रवीर्य ते हूउ । सुख भोगवीअ अतिहि इह-लोकि स्यांतन-रा पुहुतु पर-लोकि ॥११५ चित्रांगद बइसारिउ पाटि गांगेइ तिलिक कोउं निलाटि । तात-तणि परि सेवा करइ काज-कांम सधलां आदरई ।। गांगेउ बिहु-नु उवझाय कला सीखविया ते जग-माहि । जिम जिम तनि पोढेरु भयु चित्रांगद जयवंतु हूउ ।। कटकी-उपरि करइ अभ्यास लिइ लूसइ मारइ मइवास । चुपट दलि पर-भोमहि भमइ तिम तिम मनि गांगेउ गमइ । इणि परि सयल लीयां पर-खंड अपर बीहता दिइं घण डंड । इक सीमाल न मांनइं आंण तस ऊपरि मांडिउं मंडाण ॥
[84]
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org