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मोय मणि मं(?) डोहला करइ स गंगादेवि । जांणइ गंगा-तडि जई मुणिवर-पय पणमेवि ॥ गयवरि चडि रायह सरिस गयपुरि-चेत्रप्रवाडि । जिणहरि जिण-पूजा करुं पूरं मणह रहाडि ॥ संति-कुंथु-अर-भूअणि जई र, ति रास-विलास । अभय-दांण दीजइ जगिहि तु पूरई सवि आस ॥ सुहिणंतर साचा लहइ जाणइ मण-नइ रंगि । सीह-तणुं बाचडुं सींह देखइ नीअ उच्छंगि । मेरह ऊपरि महि करें छत्र-तणइ आकारि । जई (१क)राजेसर वीनविउ प्रीअ वीनती अवधारि । मणह रंगि राजा भणइ संभलि देवि सुवत्त । कु संति-कुंथु-कुल-मंडणु तउं जनमेसि सुपुत्त ॥ धम्मवंत गुणवंत अति रूपवंत सुविशाल । बलवत्तर सूरु सधर चउपट मल चउसाल ||
(गांगेय - वृत्तांत) नवइ मास अपरांति नव दिण रयणी अद्धेउ । सहसकिरण जिम उदय-गिरि तिम जनमिउ गांगेउ ।। दीवा सवि नित्तेज गिया बालक-के तेउ । सोल-कलाधर भालीयलि सोहइ सिरि गांगेउ । घरि घरि गूडीअ ऊछलीअ तोरण वंदरवालि । घिई ऊंबर घण सीचीअई माणिणि-तणइ झमालि ।। दीजई दांण अणेग परि कणय रयण मणि अंण्ण । जे उत्सव गांगेय-जनमि कहि ते जाणइ कुंण ||
चउपई हथणाउरि जनमिउ गांगेउ उत्सव कही न जाणुं तेउ । केंद्रीउ-वृहस्पति थाइ ग्रह पंच भला ऊंचइ ठाइ || जिणि थानकि गुरु तीणई राहु राजा भणइ करउ उत्साहु । जे जोसी जांणई सुअ-भेउ नाम परठिउं तेहें गांगेउ !!
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