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कलपतरु जिम वाधइ कुमर गांगेय-तणा गुण निम्मला
कय जिम बीज - चंद कय अमर । दिणि दिणि जास चडंती कला ॥
वलि कित्तावा (१) सुरपुरि गया राइ अहेडी बोलाविया । ते आविया किहि ले कृतिरा रिमझिमंति पाए धूवरा ॥ हवं बोली
स्यांतन- राजा - तणइ राजि राजा - तणइ आदेसि गजेंद्र गुडीअई छई । एक मयगला मद्यपान करावी करावी मदोन्मत्त कीजई छई ॥ तुरंगम पाखरीअइ छं। एकि तुखार तणी खुरी लोह- पात्रि जडावीअई छ । अनेक महारथ सज कीजई छई । ते (हिं) भिडमाल - प्रमुख आउध भरावी अई छई ॥ . कुंण कुंण आउध ? भलां भिंडमाल, एकाधीआ करवाल । जम-तणी जिह्वा तणी जिसी कटारी, काला कंकलोह - नी छुरी ॥ जिसिउ वीज- तणु झात्कार, तिसी तरूआरि ।
एक मुहर, जे थड (घड ? ) नींपजइ लोह - तणे भारि ॥
एकि बोलीअई पय, जिसी केसर - स्यंघनी हुई चपेटा ।
कोदंड, धनुष, तीर, तर्कस, तोणीर, भाथा । षखंड पृथ्वी - तणा साधक खड्ा ॥ पाशु, परशु, फुरी, गोफण, जोड, कमांण, सब्बल, सांगि, सेल । कुंत, लकुट प्रमुख इसां छत्रीस डंडाउध 1.
तेहे रथ भरावीअई छ ।
इसी सजाई देखी देवी गंगा ससंभ्रांत हुई अछइ । ए एवडु आरंभ - संरंभ सिउ नीपजइ बरी ( ? ) ॥ वइरी केऊं मलिया जांणीअई नही । परच क्रागम-तणी वार्त्ता कह नही । अकस्मात ए गय- नइ किहां ऊपरि सजाई ?
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इस प्रस्तावि केइ एक प्रधान पुरुष राणी पूछवा लागी छइ । ते कहई छई, मात, सांभलुं वात । ए राजाधिराज महामंडलेश्वर || एह-नई बालापण पापरिद्धि-कर्म्म आखेटक नउं व्यसन छइ । तम्ह परणियां पूठि एतला दिन वीसरी गिडं हतुं । कुणहि एकं व्याधि मृग-तणुं आमिष्य आंणी भेट कीधी हती ।
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