Book Title: Pandav Charitra Balavbodh
Author(s): 
Publisher: ZZ_Anusandhan

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Page 25
________________ कूंती - नी वात चलावीअइ छइ । [107] ( चउपई ) मथुरा - नयर वसइ सुविसाल जांणे सहसकिर (ण) अवतंस अणह-- ततु (?) आगर भर - पूर विस्तारि पणि बोली न सकेसु जांणे किर अमरापुर पवर नाम न जांणुं सविहुं तणां अंधविष्णु ठवि राजि लोकि राजि तपइ जिम सहसकिरण प्रतापीक नइ सवि सुचरित्र सूरवीर - पण पार न कोई नाम - पहइ अधिकुं परिणांम जेह - ना गुण जांणई सवि देव जगि जांणीअइ राइ - रांणेणि जाई तिसी न सुरसुंदरी एक जीभ ते मई न कहाइ कूंती जांणे रूप-निधांन सकल कला आपी उवझाइ राजा चिंतातुर थिउ तिमइ वर जो आवइ कुंती - रेसि अति उत्सव हुआ पुर--ठाइ जोसी दीधुं कुंती नांम पोढी थई लेसालं जाइ जोअण- वेस पुहुत्ती किमइ चर पाठवीआ देसि विदेसि राजा अतिहि मणिहि लवलइ कुंती जोगि न वर को मिलइ ( बोली ) राइ अंधगविष्णि वड्डु बेटु समुद्रविजइ तेडिउ छड़ जे महा-गुणे करी गंभीर, शूरवीर, पराक्रमी । सांभलि वत्स, कौंती महा-सरूप कंन्या । वली गुणे करी विशिष्ट । एह-ना मन-गमतु अभीष्ट वर न मिलइ । प्रच्छन्न-चित्तिइ मझरई घणा दिन हुआ जो आवता । ति वार समुद्रविजइ कहिउं आंम तात, ए कौंतीनुं रूप पट्टि लिखावीअइ । को एक आपणु चकोर पुरुष लेईनइ (५क) प्रिथ्वी - मंडल-माहि मोकलीअइ । जे अनुरूप वर दीसइ मोटा कुल-नु मोटा वंश - नु - गंगा नइ जमणा बिहु विचालि यदुराजा-नु मोटु वंस तेणि वंसि अवतरीउ सूर कथा एक बोलि लवलेस शौरि - नांमि सोरीपुर नयर शौरिराय - नइ बेटा घणा शौरिराउ पुहुतु पर- लोकि मथुरां राजा भोजगविष्णु अंधगविष्णु तथा दस पुत्र दस दसार ते भणीअई लोइ वडा - कुमर समुद्रविजइ नांम धरण पूरण लहुडु वसुदेव भोजगविष्णु - ars उग्रसेणि अंधगविष्णु-तणइ दीकिरी Jain Education International For Private & Personal Use Only १५० १५५ १६० www.jainelibrary.org

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