Book Title: Pandav Charitra Balavbodh
Author(s): 
Publisher: ZZ_Anusandhan

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Page 12
________________ लागा छई । केहे-ई एके कर्मकरि मजूरि आधी गांगेउ वीनविउ । अहो कुमर, एतला दिवस ए वन-खंड-माहिला गमा व्याध लब्धक वागरी अहेडी कूतिरा न दीसता, आज तेहे करी वन-खंड सघलंअ-इ दक्षिण दिसिइ भरिउं पूरिउं दीसइ छइ, अनइ वली गज रथ तुरंगम पायक तेह-नुं पार नथी लाभतु । इसी वार्ता सांभली गांगेउ-कुमर भृकटी-भीषण हूउ छइ । दिव्यमइ रथ एक सज करी छत्री डंडाउध भरी पूरी एकांग वर वीर-चालिउ छड् । स्यांतन राजा-नी सेना माहि आविउ छइ । गांगेउ आवतु देखी जे राय-ना महा सुभट हूता ते सवे धसमसी पाछा आव्या । राइ स्यांतनि बोलाव्या । ते कहिवा लागा छइं । महाराज, महारथी एक आवइ छड़ रथारूढ थिक । पणि महा-शूर वीर पराक्रमी जिसिउ काल-कितांत हुइ । हिवडां (रक) नइ समइ तिसिउ दिसिवा लागु छइ, जिसिउ हेला-मात्र माहि कटक सघलाइनु कल्पांत करइ । वली आज्ञा देतु ज आवइ छइ । जि-को माहरइ इणि वन-खंडि माहरां पालियां-पोसियां मृगलां-प्रतिइं घाउ घालइ, तेह-नई तम्हारा राय-नी आज्ञा छइ । कहतां वडी वार लागइ । गांगेउ आविउ-ई-जि। सेना सघलीअ-इ राय-परइ जइ पइठी । राजा मुहवडि हूउ छइ । वली गांगेउ कुमर कहइ छइ । अहो राजन, माहरां मृग-प्रतिइं घातु मा घालिसि । माहरु वन-खंड-माहि म पइसिसि । भइ, सांभलि जइ कहिउं नहीं करइ, तु हेलांमात्र-माहि पाणी-ऊतार करिसु । राजा स्यांतन कहइ छइ । रे पतंग किटकमात्र, हुं स्यांतन-राजा जइ दीठु न हतु तु बाते-इ नहतु सांभलिउ ? मइं संग्रामांगणि अनेकि राइ-राणां-तणा घर ऊंधां घालियां छई । इसी वार्ता बोली राजा स्यांतनि कूचि हाथ धालिउ छइ । मूंछ वल भरिखा लागु छइ । हाथि कोडंड लेई करी बांण परिठिउ । आर्णके(?) पूरित । गांगेउ-कुमर-भणी बांण मूंकिउं । गांगेउ-नइ प्रतापि करी बांण डावउं जिमणुं वही गिउं । वली गांगेउ कहइ छइ । हास्य-वार्ता यली माणस थई रहे । मेघाडंबर-छत्र-तणी अनइ छत्रधर-तणी रक्षा करे | वली चउपई गांगेउ बोलइ बलवंड करीयलि धरी धणह-कोडंड । गुण-नी मज्झि परिठिउं बांण ऊभा रहिआ जोअइ रा रांण ॥ 179]] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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