Book Title: Pandav Charitra Balavbodh Author(s): Publisher: ZZ_Anusandhan View full book textPage 9
________________ ते देखी करी वली आखेटक-नुं व्यसन सांभरिङ । ते एते आखेटक-नी सजाई हुइ छइ । चउपई तं सांभलि गंगा-मनि दाहि ए तो मोटी मझ असमाहि । जं ए राउ आहेडु करइ दीधी वाच न ते मनि धरइ ॥ कर जोडी गंगा वींनवइ सांमी तुं मोट् महियवइ । आखेटक-नउ सिउ संताप जीव-तणु वध पहिलं पाप ॥ ६० जीवि वधारिई जईअइ सम्गि जीव वधिइं जाईअइ नगि । जइ किरि माह) कहिउं करेसि तु आहेडइ मन जाएसि || अपमांनी रांणी तिणि राइ ऊमरडी आहेडइ जाइ । गंगा-देवि विमासइ वात कीधी राइ वचन मझ चात्र ॥ प्रकटिउं एह राय-नउं अभाग एव मझ रहिवा ईह न लाग । पुत्र लेई पीहरि जाएसु दांण शील तव पुण्य करेसु ॥ गंगा चाली ले गांगेउ गईअ वेगि वेअड्ड-गिरे उ । जुहारिउ जई आपणु बाप भागु मनह तणु संताप ॥ गंगा दान पुण्य अति करइ विषय-सुख-वात न मनि धरइ । वाधइ कुमर तिहां गांगेउ मातुलि कन्हइ भणइ सवि भेउ ।। ६५ पढइ गुणइ सवि ग्रंथ अपार जांण्या नव तत्त-ना विचार । स्मृति वेअ आगम सवि पुराण छंद तर्क लक्खण सुप्रमाण । लखित पठित लग बहुतरि कला सीखी वलि करिवी करि तुला । खचर-कला विद्या-नी जगीस सरमइ दंडाउध छत्रीस ॥ जांणी विद्या बहुरूपिणी नाग-पास सीखी थंभणी । मंत्र अघोर नहीं जगि तेउ जे नवि लहइ कुमर गांगेउ || स्वगि मृत्यि वरतई जि पयालि ते जांणी विद्या तिणि कालि । देवि न दांणवि राणे राइ गांगेउ किणि नवि छेतराइ ॥ ६९ वली बोली गांगेउ कुमर अनेक विद्याधर-सिउ वाद-विवाद मांडइ । त्रिगि चाचरि चुवाटा हीडइ । अनेकि राज-कुमर-तणां मन रंजवइ । पणि धर्म-नुं आगर । 1761 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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