Book Title: Panchsangraha Tika Part_1 Author(s): Chandrashi Mahattar, Malaygiri Publisher: Shravak Hiralal Hansraj View full book textPage 3
________________ पंचसं० टीका ॥ १ ॥ ॥ श्रीजिनाय नमः ॥ ॥ अथ श्रीपंचसंग्रहटीका प्रारभ्यते ॥ Jain Education International ( प्रथमो जागः ) ( मूल कर्त्ता - श्रीचंदर्षि महत्तर टीकाकार - श्री मलयगिरिजी ) पावी प्रसिद्ध करनार, पंडित श्रावक हीरालाल इंसराज ( जामनगरवाळा ) अशेषकर्मडुमदाददात्रं । समस्तविज्ञातजगत्स्वज्ञावं ॥ विधूत निःशेषकुतीर्थिमानं । प्रणम्य देवं जिनवर्द्धमानं ॥ १ ॥ संसारकूपोदरमग्नजंतु - स्तोमोद्धृतौ दस्तमिवावलंब्यं ॥ जैनागमं वादितशेषशास्त्र-यग्नावमा पूर्ण यथार्थवादं ॥ २ ॥ विवृणोमि पंचसंग्रह - मतिनिपुलग मल्पबुद्धिरपि ॥ शास्त्रांतरटीकातो । गुरूपदेशाच्च सुखबोधं || ३ || इह शिष्टाः क्वचि दिष्टे वस्तुनि प्रवर्त्तमानाः संत इष्टदेवतानमस्कारपुरस्सरमेव प्रवर्त्तते, न चायमाचार्यो न शि इति शिष्टसमय परिपालनाय, तथा श्रेयांसि बहुविघ्नानि भवंति नक्तं च- श्रेयांसि बहु 1 For Private & Personal Use Only जाग १ ॥ १ ॥ www.jainelibrary.orgPage Navigation
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