Book Title: Panchamrut
Author(s): Devendramuni
Publisher: Tarak Guru Jain Granthalay

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Page 145
________________ १३४ पंचामृत माला राजा के संकेत से बलवन्त के गले में डाल दी और बलवन्त ने अपने हाथ की माला मंजुला के गले में डाल दी। बलवन्त को उसकी वीरता का पुरस्कार मिल गया था। सभी ओर हर्ष की ध्वनि से आकाशमण्डल गूंज उठा। जन-जिह्वा पर एक ही स्वर मुखरित था कि कर्तव्य पर जो बलिदान होता है उसे सदा विजयश्री वरण करती है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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