Book Title: Panchamrut
Author(s): Devendramuni
Publisher: Tarak Guru Jain Granthalay

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Page 166
________________ मानव की बुद्धिमानी १५५ किसान ने कहा- मैं तुम्हारी शर्त को सहर्ष स्वीकार करता हूँ। किसान ने अपने खेत में आलू बो दिये । बन्दर रात-दिन उसकी रक्षा के लिए लग गये। जब खेत पूर्ण तैयार हो गया तो किसान गाड़ी लेकर माल लेने के लिए वहाँ पहुँचा । बन्दर भी पहले से वहाँ तयार थे। किसान ने अपनी शर्त के अनुसार आलू ले लिए और पत्ते बन्दरों के हाथ में लगे। जब उन्होंने आलू के पत्ते चबाये तो उन्हें स्वादिष्ट नहीं लगे। जब किसान चला गया खेत में एक स्थान पर कुछ आलू उन्हें मिल गये। जब उन्होंने वे आलू खाये तो उन्हें बहुत ही स्वादिष्ट लगे। बन्दर किसान के पीछे दौड़े, किन्तु तब तक किसान अपने घर पहुँच चुका था। उसने आ लुओं को घर में सुरक्षित रख दिया था। अत: वे निराश होकर लौट आये। कुछ दिनों के पश्चात् किसान पुनः खेती का सामान लेकर खेत पर पहुँचा। वह खेत जोतना चाहता था। किन्तु बन्दरों की क्रोधभरी मुद्रा से किसान एक बार भयभीत हो गया। किन्तु दूसरे ही क्षण संभलकर उसने कहा-बन्दर भाइयो ! तुम मेरे पर इतने नाराज क्यों हो? तुमने जैसा कहा था वैसा ही मैंने किया। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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