Book Title: Panchamrut
Author(s): Devendramuni
Publisher: Tarak Guru Jain Granthalay

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Page 151
________________ १४० पंचामत कहते हुए दोनों ने प्राण त्याग दिये। किन्तु किसी ने भी पानी नहीं पिया। ___ उस समय एक श्रेष्ठी अपनी सेठानी के साथ अन्य गाँव जा रहा था। मार्ग में इस प्रकार हरिण और हरिणी को मरे हुए देखा। सेठ ने सेठानी से पूछा --यहाँ पर कोई शिकारी भी नहीं दिखाई दे रहा है। इनको बाण भी नहीं लगा है। इन्होंने अपने प्राण क्यों त्याग दिये। क्या तुम इसका रहस्य बता सकोगी? खड़े न दीखे पारधी, लगे न दीखें बान । पूछं मैं तुमसे प्रिये, 'क्योंकर तजे पिरान ?' | सेठानी ने उत्तर देते हुए कहा-लगता है प्रियतम ! यहाँ पर जल कम है, पर स्नेह अधिक है जिसके कारण इन दोनों ने 'तू पी' 'तू पी' इस प्रकार एक-दूसरे की मनुहार करते हुए प्राण त्याग दिये जल थोड़ा नेहा घना, लगे प्रीति के बान । 'तू पी', 'तू पी' कर मरे, 'यू कर तजे पिरान' ।। सेठानी के उत्तर से सेठ अत्यधिक प्रसन्न हुआ। उसने कहा-तूने वास्तविकता का उद्घाटन किया है । और वे एक-दूसरे की प्रेम-प्रशंसा करते हुए आगे बढ़ गये। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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