Book Title: Panchamrut
Author(s): Devendramuni
Publisher: Tarak Guru Jain Granthalay

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Page 150
________________ स्नेह का पान १ हरिणी ने कहा-नाथ ! पुरुष तो पुरुषार्थ प्रधान होते हैं । विश्व में पुरुषार्थियों की ही कद्र है। मैं आपसे निवेदन करती हूँ, आप पानी पी लें। मेरी चिन्ता न करें। हरिण ने मुस्कराते हुए कहा-प्रिये ! यह सत्य है कि हम पुरुषार्थ कर सकते हैं। किन्तु उस पुरुषार्थ की मूल प्रेरिका नारी है। तुम्हारी ही प्रेरणा से हम पुरुषार्थ कर पाते हैं। अतः तुम्हें पानी की अधिक आवश्यकता है। तुम पानी पी लो। हरिणी ने कहा-नाथ ! नारी भले ही नर का पथप्रदर्शन करती हो तो भी वह उसका अनुगमन करने वाली है। उसने अपने आप को नर के चरणों में समर्पित कर दिया है। उसके पास केवल ममता है, स्वामी तो उसका नर ही है। इसलिए मैं आपसे नम्र निवेदन करती हूँ, आप पानी पी लें। हरिण ने कहा-देखो, ताली कभी एक हाथ से नहीं बजा करती। नर के सामने नारी सर्वस्व समर्पित करती है, तो पुरुष भी तो नारी को ही सब कुछ दे देता है। इसलिए तुम किसी प्रकार विचार न करो। इस प्रकार एक-दूसरे को पानी पीने के लिए Jain Education International For Private & Personal Use Only ___www.jainelibrary.org

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