Book Title: Panchamrut
Author(s): Devendramuni
Publisher: Tarak Guru Jain Granthalay

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Page 153
________________ १४२ पंचामृत व्यास वहां से चल दिया। उसे अपना अपमान महसूस हुआ। अतः चांपानेर दुर्ग को छोड़कर कटिग्राम में जाकर रहने लगा। व्यास की अनुपस्थिति से शाह को अटपटा लगने लगा। मन में विचार आया--मैंने मुल्लाओं के कहने से गलत निर्णय ले लिया। व्यास को पुनः कैसे बुलाया जाय ? उसने काजी-शेख-मुल्लाओं के समक्ष चार प्रश्न उपस्थित किये-(१) सर्वबीज, (२) सर्वरस; (३) कृतज्ञ और (४) कृतघ्न-ये चार वस्तुएँ लाओ। किन्तु मुल्लाओं में बुद्धि का अभाव था। वे बहुत सोचते रहे, किन्तु उत्तर न दे सके। दूसरे दिन मुल्लाओं ने कहा-इस प्रश्न का उत्तर हमें नहीं आता। मुहम्मदशाह ने क्रुद्ध होकर कहा-तुम बुद्ध हो। तुम्हें कुछ भी समझ नहीं है। तुम केवल ईर्ष्या करना जानते हो। यदि लघुक व्यास होता तो वह समुचित उत्तर दे सकता था। मुल्लाओं ने कहा-आपको केवल भ्रम है। लघुक व्यास इन प्रश्नों का उत्तर नहीं दे सकता, हम दावे के साथ कह सकते हैं। मुहम्मदशाह ने अपने अनुचर को भेजकर व्यास को आदरपूर्वक बुलवाया और सभी के सामने वे चारों Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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