Book Title: Panchamrut
Author(s): Devendramuni
Publisher: Tarak Guru Jain Granthalay

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Page 147
________________ १३६ पंचामृत पर छाया हो रही है। वह प्रसन्नता से झूम उठी कि मेरे कारण यात्री को सुख प्राप्त हुआ। वह उसी तरह से बैठी रही। . विश्व का यह नियम है कि सज्जनों को कष्ट देने वाले भी लोग इस संसार में हैं। वृक्ष पर एक कौआ बैठा हुआ था। उसे कोयल का यह कार्य अच्छा नहीं लगा। उसने सोचा किसी तरह कोयल को सबक सिखाना चाहिए कि परोपकार करना कितना हानिप्रद _कौआ पक्षियों में बहुत ही चालाक पक्षी है। वह सोचने लगा-ऐसा कार्य करना चाहिए कि साँप भी मर जाय और लाठी भी न टूटे। वह तेजी से उड़कर एक हड्डी का टुकड़ा ले आया और वह हड्डी का टुकड़ा यात्री के मुंह पर डाल दिया। मुंह पर हड्डी का टुकड़ा गिरने से यात्री उठ बैठा। वह अपनी चोट को सहलाने लगा। उसने अपने सन्निकट पड़ी हुई हड्डी के टुकड़े को देखा और ऊपर देखा तो कोयल बैठी हुई थी। बिना सोचे-समझे ही एक तीक्ष्ण धार के पत्थर को उसने हाथ में उठाया और पूरी शक्ति के साथ कोयल को ओर फेंक दिया। पत्थर को फेंकते हुए देखकर कौआ बहुत ही प्रसन्न हुआ कि अब कोयल अपनी जान से हाथ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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