Book Title: Paia Pacchuso
Author(s): Vimalmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati

Previous | Next

Page 11
________________ स्वकथ्य विक्रम संवत् २०३२ का चातुर्मासिक प्रवास करने जब मैं ग्वालियर (मध्यप्रदेश) की ओर प्रस्थान कर रहा था तब गणाधिपति पूज्य गुरुदेव श्री तुलसी ने मुझे प्राकृत भाषा के विशेष अध्ययन की ओर प्रेरित किया। उस समय तक मेरा प्राकृत भाषा में महज प्रवेश मात्र था,गहन अध्ययन की अपेक्षा थी । गुरुदेव की प्रेरणा से मैंने इस दिशा में कदम रखे । संयोगवश ग्वालियर दो चातुर्मास हुए। उस समय अध्ययन का क्रम चलता रहा। काव्य प्रेरणा वि.सं.२०३४ का चातुर्मासिक प्रवास जोधपुर करने के लिए गुरुदेव ने मुझे मुनि श्री ताराचंदजी के साथ भेजा। हम लोग जोधपुर की ओर जा रहे थे । मार्ग में मैं प्रतिदिन प्राकृत भाषा में एक या दो श्लोक बनाता और मुनि श्री को दिखला देता । एक दिन मुनि श्री ने मुझे प्रेरणा देते हुए कहा-तुम प्रतिदिन प्राकृत भाषा में श्लोक तो बनाते ही हो,यदि किसी कथानक का आधार लेकर बनाओ तो सहज ही काव्य का निर्माण हो जायेगा। मुनि श्री की प्रेरणा मेरे अंत:करण में लग गई । मैंने किसी ऐतिहासिक कथानक को ही आधार बनाकर श्लोक रचना करने का विचार किया। उस समय मेरे पास दो ऐतिहासिक कथानक लिखे हुए थे-ललितांग कुमार और बंकचूल । मैंने सर्वप्रथम ललितांग कुमार के ही कथानक को आधार बनाया और श्लोक रचना प्रारंभ कर दी । मैं जितने भी श्लोक बनाता उसे मुनि श्री को दिखला देता । मुनि श्री को मेरी रचना पसंद आ गई । इस प्रकार ललियंग चरियं का निर्माण हो गया, यह मेरी प्राकृत भाषा में सर्वप्रथम रचना है। ___ मुनि श्री की वह अंत:प्रेरणा अनेक वर्षों तक मुझे काव्य-निर्माण की ओर प्रेरित करती रही और वर्तमान में भी कर रही है। जिसके फलस्वरूप ललियंगचरियं, बंकचूलचरियं, देवदत्ता,सुबाहुचरियं,पएसीचरियं,मियापुत्तचरियं इत्यादि पद्य काव्यों का निर्माण हुआ। कृति परिचय प्रस्तुत कृति ‘पाइयपच्चूसो' में मेरे तीन काव्यों का समावेश है- बंकचूलचरियं, पएसीचरियं और मियापुत्तचरियं । बंकचूलचरियं - यह प्राचीन ऐतिहासिक कथानक पर आधारित चरित्र काव्य है। इसका आधार जैन कथाएं हैं । इसके नौ सर्ग हैं । प्रत्येक सर्ग भिन्न-भिन्न छंदों में आबद्ध है। इस काव्य की रचना वि.सं.२०३५ अजमेर में हुई। पएसीचरियं - यह काव्य जैन आगम रायपसेणइय' के आधार पर रचित है। इसके चार सर्ग है । प्रत्येक सर्ग भिन्न-भिन्न छंदों में आबद्ध है। इसकी रचना वि.सं.२०३८ लाडनूं में हुई।

Loading...

Page Navigation
1 ... 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 ... 172