Book Title: Niyamsara Part 01
Author(s): Kamalchand Sogani, Shakuntala Jain
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy

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Page 40
________________ इदि 22. भूपव्वदमादीया भणिदा अइथूलथूलमिदि खंधा। थूला इदि विण्णेया सप्पीजलतेल्लमादीया ॥ भूपव्वदमादीया [(भूपव्वदं)+(आदीया)] भूपव्वदं [(भू)-(पव्वद) भूमि, पर्वत 2/1-1/2] आदीया (आदिय) 1/2 आदि 'य' स्वार्थिक भणिदा (भण) भूकृ 1/2 कहे गये अइथूलथूलमिदि [(अइथूलथूलं)+ (इदि)] अइथूलथूलं [(अइ) अ- अति स्थूलस्थूल (थूलथूल) 2/1-1/2 वि] इदि (अ)= शब्दस्वरूपद्योतक खंधा (खंध) 1/2 स्कन्ध थला (थूल) 1/2 वि स्थूल अव्यय शब्दस्वरूपद्योतक विण्णेया (विण्णेय) विधिकृ 1/2 अनि समझे जाने चाहिये सप्पीजलतेल्लमादीया[(सप्पीजलतल्लं)+(आदीया)] सप्पीजलतेल्लं [(सप्पि)- घी, जल, तेल (जल)-(तेल्ल)'2/1-1/2] आदीया' (आदिय) 1/2 आदि 'य' स्वार्थिक अन्वय- भूपव्वदमादीया अइथूलथूलमिदि खंधा भणिदा सप्पीजलतेल्लमादीया थूला इदि विण्णेया। अर्थ- भूमि, पर्वत आदि अति स्थूलस्थूल स्कंध कहे गये (हैं)। घी, जल, तेल आदि स्थूल (स्कंध) समझे जाने चाहिए। प्रथमा विभक्ति के स्थान पर कभी-कभी द्वितीया विभक्ति होती है। . . (हेम-प्राकृत-व्याकरणः 3-137 वृत्ति ) छन्द की पूर्ति हेतु 'आदिय' का ‘आदीय' किया गया है। 3. यहाँ छन्द की मात्रा की पूर्ति हेतु 'सप्पि' के स्थान पर 'सप्पी' किया गया है। 22 और 23 गाथाओं में इतरेतर द्वन्दसमास के नियम का प्रयोग किया गया है। अतः बहुवचन का प्रयोग हुआ है तथा उत्तरपद के लिंग के अनुसार प्रथमा बहुवचन का प्रयोग हुआ है। नोटः संपादक द्वारा अनूदित नियमसार (खण्ड-1) (33)

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