Book Title: Niyamsara Part 01
Author(s): Kamalchand Sogani, Shakuntala Jain
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy
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मूल पाठ
वीरं
णमिऊण जिणं वोच्छामि णियमसारं
अणंतवरणाणदंसणसहावं । केवलिसुदकेवलीभणिदं ॥
मग्गो मग्गफलं ति यदुविहं जिणसासणे समक्खादं । मग्गो मोक्खउवाओ तस्स फलं होइ णिव्वाणं ॥
णियमेण य जं कज्जं तं नियमं णाणदंसणचरित्तं । विवरीयपरिहरत्थं भणिदं खलु सारमिदि वयणं ॥
णियमं मोक्खउवाओ तस्स फलं हवदि परमणिव्वाणं । एदेसिं तिन्हं पि य पत्तेयपरूवणा होइ ॥
अत्तागमतच्चाणं सद्दहणादो हवेइ ववगयअसेसदोसो सयलगुणप्पा हवे
सम्मत्तं । अत्तो ॥
छुहतण्हभीरुरोसो रागो मोहो चिंता जरा रुजा मिच्चू । सेदं खेद मदो रइ विम्हिय णिद्दा जणुव्वेगो ॥
णिस्सेसदोसरहिओ केवलणाणाइपरमविभवजुदो । सो परमप्पा उच्चइ तव्विवरीओ ण परमप्पा ॥
नियमसार (खण्ड-1)
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