Book Title: Navtattva Prakarana
Author(s): Vistirnashreeji
Publisher: Jaybhikkhu Sahitya Trust

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Page 5
________________ अनादिकालीन भवभ्रमण करते हुए जिन जीवों ने मात्र अंतर्मुहूर्त प्रमाणसमय तक भी यदि सम्यग् दर्शन का स्पर्श किया है तो उनका संसार में भ्रमण अर्धपुद्गलपरावर्त समय से अधिक नहीं रहता ! इतना महत्त्व है नवतत्त्वों का सम्यग् दर्शन के लिए । सम्यग् दर्शन के बिना मुक्ति असंभव ही है । नवतत्त्व तो मूल भी हैं और सार भी हैं श्रुतज्ञान के । नवतत्त्व जैन परंपरा के आत्मवाद, कर्मवाद का विशद् विवेचन है । चाहता हूं कि नवतत्त्व विषयक आपके इस सत्प्रयास का जन-जन लाभ उठाए। पौन:पुन्येन आपके सत्प्रयास की एवं श्रुतभक्ति की अनुमोदना के साथ विरमामि । सरि विक्रम Mgs विशिष्ट ग्रंथ की उपलब्धि विदुषी साध्वी विस्तीर्णाजी ने जैन धर्म के प्रधान तत्त्व जीवादि नौ तत्त्वों पर विस्तारपूर्वक विवेचन करनेवाला ग्रन्थ नवतत्त्व बालावबोध (अज्ञातकर्तृक) पर अपनी विशिष्ट शैली में महानिबंध लिखकर एक विशिष्ट ग्रन्थ उपलब्ध करवाया है । यह ग्रन्थ मननीय तो है ही साध्वीश्रीने अपने ढंग से उसका सुन्दर विवेचन कर उसे अधिक जनोपयोगी बनाया है । इस कठिन पुरुषार्थ के लिए साध्वीजी धन्यवाद के पात्र है ही । पाठक भी इस मननीय तत्त्वचिंतन प्रधान ग्रंथ को पढ़कर धन्यता का अनुभव करेंगे ऐसा मेरा मंतव्य है । रूपेन्द्रकुमार पगारिया Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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