Book Title: Navpadmay Siddhachakra Aradhan Vidhi Author(s): Vijayodaysuri Publisher: Maneklalbhai Mansukhbhai View full book textPage 8
________________ 'एसो पंच नमुक्कारो' (आ पंचपरमेष्ठि नमस्कार ) ए पद नीचे तलीयामां वज्रमय शिलारूप छे. ४ सव्वपावप्पणासणो; वप्रो वनमयो बहिः । मंगलाणं च सव्वेसिं, खादिराङ्गारखातिका ॥५॥ खाहान्तं च पदं ज्ञेयं, पढमं हवइ मंगलं'। वप्रोपरि वज्रमयं, प्रधानं देहरक्षणम् ॥ ६ ॥ महाप्रभावा रक्षेयं, कुद्रोपद्रवनाशिनी। परमेष्ठिपदोद्भूता, कथिता पूर्वसूरिभिः ॥७॥ यश्चैवं कुरुते रक्षा, परमेष्ठिपदैः सदा (ह)। तस्य न स्याभयं व्याधि-राधिश्चापि कदाचन ॥८॥ 'सव्वपावप्पणासणो' ए पद बहार फरता ( चोमेर )वज्रमय किल्लारूप छे. 'मंगलाणं च सव्वेसि ए पद किल्ला फरती खेरना अंगारावाळी खाइ रूप छे. ५ ___ 'पढमं हवइ मंगलं ' ए पद किल्ला उपर रहेलु मुख्य वज्रमय शरीरना रक्षणरूप छे. सर्व पदोमां 'स्वाहा' पद अन्ते जोडी अंग रक्षा करवी. ६ __पंचपरमोष्ठ पदोथी उत्पन्न थयेली, क्षुद्र उपद्रवोनो नाश करनारी, पूर्वाचार्य भगवंतोए बतावेली आ 'आत्मरक्षा' महा प्रभाव वाली छे. जे माणस हमेशां पंचपरमेष्ठि पदोए (सहित) आ प्रमाणे आत्मरक्षा करे छे तेने कोइ दिवस पण भय, व्याधि ( शारीरिक पीडा) अने आधि (मानसिक पीडा) कांइ पण थतुं नथी. ८Page Navigation
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