Book Title: Navpadmay Siddhachakra Aradhan Vidhi Author(s): Vijayodaysuri Publisher: Maneklalbhai Mansukhbhai View full book textPage 6
________________ आमुख हैं शास्त्रे भक्तिर्जगद्वन्यै- मुक्तेर्दूती परोदिता ॥ अत्रैवेयमतो न्याय्या, तत्प्राप्त्यासन्नभावतः ॥ १॥ यस्य त्वनादरः शास्त्रे, तस्य श्रद्धादयो गुणाः ॥ उन्मत्तगुणतुल्यत्वा-न्न प्रशंसास्पदं सताम् ॥२॥ पापामयौषधं शास्त्रं, शास्त्रं पुण्यनिबन्धनम् ॥ चक्षुः सर्वत्रगं शास्त्रं शास्त्रं सर्वार्थसाधकम् ॥३॥ श्री जगद्वन्द्य तीर्थंकर भगवंतोए शास्त्रमां भक्ति राखवी मुक्तिनी मोटामां मोटी दूती कही छे, माटे मुक्तिप्राप्तिने नजीकपणुं लावनार होवाथी मुक्तिमार्गमां शास्त्रभक्ति ए ज उचित छे. ॥१॥ जेने शास्त्र प्रत्ये अनादर छे, तेना श्रद्धा विगेरे गुणो उन्मत्तगुण तुल्य होवाथी सत्पुरुषोने प्रशंसानुं स्थान नथी. ॥ २ ॥ शास्त्र ए पापरोगनुं औषध छे, शास्त्र ए पुण्यनुं कारण छे. शास्त्र ए सर्वव्यापि नेत्र छे अने शास्त्र ए सर्व अर्थनी सिद्धि करनार छे. ॥३॥Page Navigation
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