Book Title: Navpadmay Siddhachakra Aradhan Vidhi
Author(s): Vijayodaysuri
Publisher: Maneklalbhai Mansukhbhai

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Page 7
________________ श्री ॥ आत्म रक्षाकर ॥ ॥श्री वज्रपञ्जरस्तोत्र ॥ परमेष्ठिनमस्कारं, सारं नवपदात्मकम् । आत्मरक्षाकरं वज्र,-पञ्जराभं स्मराम्यहम् ॥१॥ ॐ नमो अरिहंताणं,शिरस्कं शिरसि स्थितम् ,, नमो सिद्धाणं, मुखे मुखपटं वरम् ॥ २॥ ,, नमो आयरियाणं, अङ्गरक्षातिशायिनी। ,, नमो उवज्झायाणं, आयुधं हस्तयोदृढम् ॥३॥ ,, नमो लोए सव्वसाहूणं, मोचके पादयोःशुभे एसो पञ्चनमुक्कारो, शिला वज्रमयी तले ॥४॥ __ श्री नवपद स्वरूप आत्मानी रक्षा करनार अने वज्रना पंजर तुल्य श्रीजिनशासनना सार रूप श्री पंचपरमेष्ठि नमस्कारनुं हुं स्मरण करूं छु-१ 'ओं नमो अरिहंताणं' ए पद मस्तकपर रहेला मुकुट सदृश छे. 'ओं नमो सिद्धाणं' ए पद मुख उपर श्रेष्ठ मुखपट समान छे.२ 'ओं नमो आयरियाण' ए पद अतिशयवाळी अंगरक्षा रूप छे. ‘ओं नमो उवज्झायाणं ' ए पद बे हस्तने विषे दृढ शस्त्र समान छे. ३ ____ 'ओं नमो लोए सव्वसाहूणं' ए पदः बन्ने पगनी रक्षा करनार शुभ मोजडीरूप छे.

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