Book Title: Natak Samaysara
Author(s): Banarasidas
Publisher: Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust

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Page 452
________________ પદ્મ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates સમયસાર નાટકના પધોની વર્ણાનુક્રમણિકા પૃષ્ઠ પધ अमृतचंद्र बोले मृदुवानी ३०५ | अमृतचंद्र मुनिराजकृत अलख अमूरति अरूपी ३६१ २३ अलप ग्यान लघुता लखै ३७८ अविनासी अविकार परमरसधाम हैं अशुभमैं हारि शुभजीति यहै ३१२ ३७४ अ अचल अखंडित ग्यानमय अच्छर अरथमैं मगन रहै सदा अजथारथ मिथ्या मृषा अतीचार एपंच प्रकारा अद्भूत ग्रंथ अध्यातम वानी अद्य अपूव्व अनवृत्ति त्रिक अनुभव चिंतामनि रतन, अनुभव है रसकूप अनुभव चिंतामनि रतन जाके हिय परगास अनुभौके रसकौं रसायन कहत अपनैही गुन परजायसौं प्रवाहरूप अपराधी मिथ्यामती अब अनिवृत्तिकरन सुनु भाई अब उपशांतमोह गुनथाना अब कछु कहौं जथारथ वा अब कवि निज पूरब दसा अब निचै विवहार अब पंचम गुनथानकी अब बरनौं अष्टम गुनथाना अब बनौं इकईस गुन अब बरनौं सप्तम विसरामा अब यह बात कहूँ है जैसे अब सुनि कुकवि कहौं है जैसा १३ १४६ १४ अष्ट महामद अष्ट मल असंख्यात लोक परवान जे अस्तिरूप नासति अनेक एक अहंबुद्धि मिथ्यादसा आ आचारज कहैं जिन वचनकौ आठ मूलगुण संग्रहै ३७ २२८ आदि अंत पूरन - सुभाव - संयुक्त है आतमको अहित अध्यातम ३९९ ४०० ४१२ आतम सुभाउ परभाउकी आपा परिचै निज विषै ३६२ | आस्रवकौ अधिकार यह ३८२ आस्रवरूप बंध उतपाता ३८५ ३९९ आस्रव संवर परनति जौलौं आसंका अस्थिरता वांछा ३८३ इ ३९८ इति श्री नाटक ग्रंथमैं ४१६ ४१३ इहभव - भय परलोक-भय इह विचारि संछेपसौं Please inform us of any errors on rajesh@AtmaDharma.com ૪૨૫ પૃષ્ઠ ३१३ ३६३ २०७ ३९६ ५ ३४७ ३७६ १९३ ३५४ १८९ ३०४ ३८६ ३४ १२१ १४८ ३७५ १२१ ४०६ ४०६ ३७६ २४४ १६० ३६७

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