Book Title: Natak Samaysara
Author(s): Banarasidas
Publisher: Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust

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Page 456
________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates પઘોની વર્ણાનુક્રમણિકા ૪૨૯ ૫ઇ ३०५ २०१ २० २४७ १३७ ३५२ २८६ ४० પધ चारितमोहकी च्यारि मिथ्यातकी | चित कौरा करि धरमधर चित प्रभावना भावजुत चिदानंद चेतन अलख चित्रसारी न्यारी परजंक न्यारौ चिनमुद्राधारी ध्रुव धर्म चेतन अंक जीव लखि लीन्हा | चेतन करता भोगता चेतनजी तुम जागि विलोकहु | चेतन जीव अजीव अचेतन | चेतन मंडित अंग अखंडित चेतनरूप अनुप अमूरति चेतन लक्षन आतमा, आतम चेतन लच्छन आतमा, जड चेतनवंत अनंत गन परजै चेतनवंत अनंत गुन सहित चौदह गुनथानक दसा च्यारि खिपै त्रय उपशमै ५८ २२० પૃષ્ઠ | પધ ३७८ | जगत चक्षु आनंदमय जगतमैं डोलैं जगवासी नररूप ३७६ | जगमैं अनादिको अग्यानी कहै | जगवासी अग्यानी त्रिकाल | १३९ | जगवासी जीवनिसौं गुरु उपदेस २४८ | जगी सुध्द समकित कला २५० | जथा अंधके कंधपर २५५ | जदपि समल विवहारसौं ३३८ | जब चेतन संभारि निज पौरुष ६२ जब जाकौ जैसौ उदै २२३ | जब जीव सोवै तब समुझै सुपन | जब यह वचन प्रगट सन्यौ | जबलग ग्यान चेतना न्यारी १९६ जबलग जीव सुद्ध वस्तुकौं जब सुबोध घटमैं परगासै । ५७ । जबहीतैं चेतन विभावसौं उलटि ४०६ | जम कृतांत अंतक त्रिदस जमकौसौ भ्राता दुखदाता है जहां काहू जीवको असाता उदै | जहां ग्यान किरिया मिलै | ३८० | जहां च्यारि परकिति खिपहि ३८१ जहां तहां जिनवानी फैली २०५ जहां न भाव उलटि अध आवै ४०२ | जहां न रागादिक दसा ३८१ | जहां परमातम कलाकौ परकास ४१३ | जहां प्रमाद दसा नहि व्यापै जहांलौ जगतके निवासी जीव ४०६ | जहां सुद्ध ग्यानकी कला उदोत १४ १७७ १४० २५७ २८७ १७९ ३०९ । २९६ २१ । | १५९ ४०५ २८६ ३८१ ४१८ ४०१ छपक श्रेनी आ3 नवें छयउपसम बरतै त्रिविधि छय-उपसम वेदक खिपक छिनमैं प्रवीन छिनहीमैं | छीनमोह पूरन भयौ छै षट वेदै एक जौ छंद सबद अछर अरथ | ४०० ११४ १७३ २३४ १८३ २८४ | जगतके प्रानी जीति वै रह्यो Please inform us of any errors on rajesh@ AtmaDharma.com

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