Book Title: Natak Samaysara
Author(s): Banarasidas
Publisher: Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust
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४३८
સમયસાર નાટક
७५ १२२ २३३ ३०३ ३०५
१९८
३१० | सजन'
૫ધ
પૃષ્ઠ | પધ सबरसगर्भित मूल रस
३०९ | सुद्धभाव चेतन असुद्धभाव चेतन समकित उतपति चिहन गुन
३७५ | सुद्ध सुछंद अभेद अबाधित समता-रमता उरधता
| सुद्धातम अनुभव जहां | समता बंदन थुति करन
३९३ | सुद्धातम अनुभौ कथा | समयसार आतम दरब
| सुद्धातम अनुभौ क्रिया समयसार नाटक अकथ
४०९ | सुन प्रानी सदगुरु कहै | समझें न ग्यान कहैं करम कियेसौं । १०५ । सो बुध करम दसा रहित समैसार नाटक सुखदानी
४१६ | सोरहसौ तिरानवै बीतै सम्यकवंत कहै अपने गन
| सोभामैं सिंगार बसै सम्यकवंत सदा उर अंतर
१३३ | संकलेश परिनामनिसौं सम्यक सत्य अमोघ सत
२३ । संकलेश भावनि बधै सरबविसुद्धी द्धारलौं
| संजम अंस जग्यौ जहां सरलकौं सठ कहै
१८७ | संतत जाके उदरमैं सर्वसुद्धी द्वार यह
३०६ । स्यादवाद अधिकार अब सहै अदरसन दुरदसा
३९६ | स्यादवाद अधिकार यह सात प्रकृति उपसमहि ३ ७९ । स्यादवाद आतमदशा साधी दधि मंथमैं अराधी
२२७ | स्वपर प्रकासक सकति हमारी साध्य सुद्ध केवल दशा
३३६ | स्वारथके साचे परमारथके साचे सामायिककीसी दसा
३८७ सासादन गुनथान यह
३२९ । हांसीमैं विषाद बसै । सिद्ध समान रुप निज जानै २८७ | हिरदै हमारे महा मोहकी सिद्धक्षेत्र त्रिभुवनमुकुट
| २१ | हिंसा मृषा अदत्त धन सिष्य कहै स्वामी तुम करनी | १०० है नांही नांही सु है सील तप संजम विरति दान | ९९ हौं निहचै तिहुँकाल सुख निधान सक बंध नर
४२१ सुगुरु कहै जगमैं रहै
२७७ सुगुरु ग्यानकै देह नहि
२९७ | ज्ञेयाकार ग्यानकी परणति सुद्ध दरब अनुभौ करै
२७२ | ज्ञेयाकार ब्रह्म मल मानै सुद्धनयातम आतमकी सुद्ध बुद्ध अविरूद्ध
१६६
२९३ ४२० ३०७ ९७ १७ ३८६ १६ ३१४ ३३५
३२ ३५७
३
३४० २८८ ३९३ ३१७ २७
२७० २७१
३६
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