Book Title: Natak Samaysara
Author(s): Banarasidas
Publisher: Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust
View full book text
________________
Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates
४६
સમયસાર નાટક
३७३
१०३
१५६ २७२
२२ २७८
२९१
१९
१८८
| ५ध बंधै करमसौं मुढ ज्यौं ब्रह्मग्यान आकासमैं ब्रह्मग्यान-नभ अंत न आवै
भ | भयौ ग्रंथ संपूरन भाखा | भयौ सुध्द अंकूर गयौ भावकरम करतव्यता भाव पदारथ समय घन | भेदग्यान आरासौं दुफारा करै भेदग्यान तबलौं भलौ भेदग्यान संवर जिन्ह पायौ भेदग्यान साबू भयौ भेदग्यान संवरनिदान निरदोष भेदविज्ञान जग्यौ जिन्हके घट भेदि मिथ्यात सु बेदि महारस भेषधरि लोकनिकौं बंचै सो भेषमैं न ग्यान नहि ग्यान गुरु भैया जगवासी त उदासी व्हैक
પૃષ્ઠ | પધ | १५७ । मिश्र दसा पूरन भई | ४११ | मुकितके साधककौं बाधक | ४११ | मूढ करमकौ करता होवै
| मूढ मरम जानैं नही ४०९ | मुनि महंत तापस तपी २४० | मुरखकै घट दुरमति भासी २५४
| मृषा मोहकी परनति फैली
मैं करता मैं कीन्ही कैसी २१२ | मैं कीनौं मैं यौं करौं १२६ | मैं त्रिकाल करनीसौं न्यारा
| मोख चलिवेकौ सौंन करमको
| मोख सरुप सदा चिनमूरति १२५ | मोह मद पाइ जिनि संसारी ६ मोह महातम मल हर १२४
य २९९ यथा जीव करता न कहावै २९८ | यथा सूत संग्रह विन
| यह अजीव अधिकारकौं
यह एकन्त मिथ्यात पख २८९ | यह निचोर या ग्रंथको
| यह पंचम गुनथानकी | १३१ | यह सयोगगुनथानकी
२२९ या घटमैं भ्रमरुप अनादि | ३३९ | याहौं नर-पिंडमैं विराजै ४१५ । याही वर्तमानमै भव्यनिकौ ३८२ ४१५ । रमा संख विष घन सरा
२८९ २९२ १२ १०१ १७२ १५२
म
२४६ २६२ ६७ २५७ ११७ ३९१ ४०५
६३
मनवचकाया करमफल महा धीठ दुखकौ वसीठ महिमा सम्यकज्ञानकी। माटी भूमि सैलकी सो संपदा माया छाया एक है मांसकी गरंथि कुच कंचन-कलस मिथ्यामति गंठि-भेद जगी मिथ्यावंत कुकवि जे प्रानी
२०३
४२
| ३४९
Please inform us of any errors on rajesh@ AtmaDharma.com

Page Navigation
1 ... 461 462 463 464 465 466 467 468 469 470 471