Book Title: Natak Samaysara
Author(s): Banarasidas
Publisher: Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust

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Page 462
________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates પઘોની વર્ણાનુક્રમણિકા ४34 ३०७ १२८ ६७ ३६९ ३९८ પુષ્ઠ | પધ । १९ । प्रगटरुप संसारमैं | प्रगटि भेदविग्यान आपगुन १६५ प्रथम अज्ञानी जीव कहै २७८ | प्रथम एकांत नाम मिथ्यात २३९ | प्रथम करन चारित्रको | २०० | प्रथम नियत नय दूजी ४१७ | प्रथम निसंसै जानि | २१ । प्रथम मिथ्यात दूजौ सासादन १०९ प्रथम सुद्रिष्टिसौ सरीररूप प्रथम सिंगार वीर दुजौ रस ८० | प्रभु सुमरौ पूजौ पढ़ौ ८१ प्रज्ञा धिसना सेमुसी ८६ १६८ २८ ३६९ २०८ ३०७ १४४ | २१ । २१ પધ | परमपुरुष परमेसुर परमज्योति परम प्रतीति उपजाय गनधरकीसी परम रूप परतच्छ | पर सुभावमैं मगन है परिग्रह त्याग जोग थिर तीनौं पाटी बांधी लोचनिसौं सकुचै | पांडे राजमल्ल जिनधर्मी पाप अधोमुख एन अघ पाप-पुन्नकी एकता पाप बंध पुन्न बंध दुहूंमैं | पुग्गलकर्म करै नहि जीव | पुद्गल परिनामी दरब पुन्य सुकृत ऊरध वदन | पुव्वकरमविष तरु भए पूरव करम उदै रस भुजै पूरव अवस्था जे करम-बंध कीने पूरब बंध उदय नहि व्यापै पूर्व उदै सनबंध पूर्व बंध नासै सोतो संगीत कला पंच अकथ परदोष पंच अनुव्रत आदरै पंच खिमैं इक उपशमै पंच परकार ग्यानावरनको नास पंच प्रमाद दसा धरै पंच भेद मिथ्यातके पंच महाव्रत पालै पंच समिति पंडित विवेक लहि एकताकी | प्रकृति सात अब मोहकी १६३ २९३ | फरस जीभ नासिका १४९ | फरस-बरन-रस-गंध १५ ३६८ ४१९ १४६ १४६ ४३ २३९ । बरनै सब गुनथानके १३३ | बहुत बढ़ाई कहालौं कीजै | १६९ | बहविधि क्रिया कलेससौं १६८ | बात सनि चौंकि उठै बातहीसौं | ३८६ | बानारसी कहै भैया भव्य सुनौ | ३८१ | बालापन काहू पुरुष | ३६१ | बैदपाठी ब्रह्म मांनि निहचै सुरूप बौध छिनकवादी कहै ३७० | बंदौं सिव अवगाहना | ३९२ | बंध द्वार पुरौ भयौ १४१ | बंध बढावै अंध वै ३७८ २५७ २६३ २५६ २१२ १७९ Please inform us of any errors on rajesh@ AtmaDharma.com

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