Book Title: Natak Samaysara
Author(s): Banarasidas
Publisher: Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust

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Page 461
________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates ४३४ સમયસાર નાટક १६१ ४१७ २२ नटवाजा २६६ ४२० પધ दरवित ये सातौं विसन दरसन-ग्यान-चरन त्रिगनातम दरसन ग्यान चरन दसा । दरस विलोकनि देखनौं दर्व खेत काल भाव च्यारौं | दर्व भाव विधि संजुगत दर्वित आस्त्रव सो कहिए जहं दर्सन विसद्धिकारी बारह विरतदसधा परिग्रह-वियोग-चिंता | दुरबुद्धि मिथ्यामती दूषन अढारह रहित देखु सखी यह ब्रह्म विराजित देव कुदेव सुगुरु कुगुरु देवमूढ गुरुमूढ़ता देह अचेतन प्रेत-दरी रज ३९७ २६२ २५० ३८५ ३५८ २२ २४९ પૃષ્ઠ | પધ ३४७ ३८ । नख सिख मित परवांन २९९ | | नगर आगरे मांहि विख्याता | नटबाजी विकलप दसा ३१५ | नाटक ससार हित जीका ३८६ | नाना विधि संकट दसा | ११० नाम साध्य-साधक को | निज निज भाव क्रियासहित १६० | निजरूपा आतम सकति २५९ | निपुन विचच्छन विबध बध ४०४ | निरभिलाष करनी करै ३७० | निरभै निराकुल निगम वेद ३७० | नियत एक विवहारसौं ३७७ | निराकार चेतना कहावै दरसन १९७ | निराकार जो ब्रह्म कहावै निराबाध चेतन अलख २१४ | निसि दिन मिथ्याभाव बह १८० | निहचै अभेद अंग उदै गुनकी १८१ | निहचै दरबद्रिष्टि दीजै निहचै निहारत सुभाव ४१८ | निहचैमैं रूप एक विवहारमैं | १६८ | नै अनंत इहबिधि कही | ३९२ | नंदन बंदन थुति करन २०६ प | २३८ | पद सुभाव पुरब उदै | १३६ । परकी संगति जो रचै परकौं पापारंभको २९५ ३६७ २१९ २७१ ६० | धरति धरम फल हरति धरम अरथ अरु काम सिव धरमकौ साधन जु वस्तुको धरम न जानत बखानत धर्मदास ये पंचजन धर्ममैं न संसै सुभकर्म धर्मराग विकथा वचन धायौ सदा काल पै न पायौ धीरके धरैया भवनीरकै ध्यान धरै करै इन्द्रिय-निग्रह ९० २६४ ३५९ २४६ २८ ३१३ २३३ २६२ २२४ ३९० Please inform us of any errors on rajesh@ AtmaDharma.com

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