Book Title: Natak Samaysara
Author(s): Banarasidas
Publisher: Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust

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Page 459
________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates ४३२ સમયસાર નાટક २५२ २५७ १३४ १८ १६ ३७० २४५ ३८८ १४० ૫ધ પૃષ્ઠ | પધ जैसैं महारतनकी ज्योतिमैं | ८७ | जो दुरमती विकल अग्यानी जैसैं महिमंडलमैं नदीको प्रवाह | १९६ | जो दुहुपनमैं एक थौ | जैसैं मुगध धान पहिचानै ३०२ | जो नर सम्यकवंत कहावत | जैसैं मृग मत्त वृषादित्यकी १९० | जो नव करम पुरानसौं | जैसैं रवि-मंडलके उदै ३३ | जो नवकरि जीरन करै जैसे राजहंसके वदनके | ७८ | जो नाना विकलप गहै जैसैं रंक पुरुषकै भायें १८६ | जो निहचै निरमल सदा | जैसे सलिल समूहमैं १५ | जो नौ बाडि सहित विधि साधै जैसैं सांख्यमती कहैं अलख २५५ । जो पद भौपद भय हरै | जैसो जो दरब ताके तैसो गुन ७० | जो परगुन त्यागंत जैसो जो दरब तामैं तैसोई सुभाउ | १५४ जो पुमान परधन हरै जैसो निरभेदरूप निहचै २९५ को पुरवकृत करम फल | जो अडोल परजंक मुद्राधारी ४०३ जो पुरवकृत करम विरख जो अपनी दुति आप विराजत २५ जो पुरव सत्ता करम जो अरि मित्र समान विचारै ३८७ जो बिन ग्यान किया अवगाहै जोई इकत नय पच्छ गहि ३६९ | जो मन विषय कषायमैं जोई करम उदोत धरि १७ | जो मिथ्या दल उपसमै जोई जीव वस्तु अस्ति ३३५ । मुनि संगीतमैं रहै जोई द्रिग ग्यान चरनातम ३०० | जो मैं आपा छांडि दीनौ जो उदास वै जगतसौं ३४४ | जो विलसै सुख संपदा जो उपयोग स्वरूप धरि १८ जो विवेक विधि आदरै जो कबहूं यह जीव पदारथ १२३ | जो विशुद्ध भावनि बंधै जोग धरै रहै जोगसौं भिन्न २६ जो सचित भोजन तजै जो जगकी करनी सब ठानत १९७ | जो सामायिककी दसा जो दयालता भाव सो | २९९ | जो सुछंद वरतै तजि डेरा जो दरवास्रव रूप न होई | १११ | जो सुवचन रुचिसौं सुनै जो दसधा परिग्रहको त्यागी | ३८९ | जो संवरपद पाइ अनंदै जो दिन ब्रह्मचर्य व्रत पालै ३८८ | जो स्ववस्तु सत्तारुप १६७ २२४ २९३ २९४ १८ । १३६ २०७ ३७१ ३९७ ३६३ २६३ ३८९ १७ ३८७ ३८७ ३९० ३४४ १३० १६४ Please inform us of any errors on rajesh@ AtmaDharma.com

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