Book Title: Natak Samaysara
Author(s): Banarasidas
Publisher: Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust

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Page 458
________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates પધોની વર્ણાનુક્રમણિકા ४१ પૃષ્ઠ ४१४ ३४२ ८७ ४१० १९२ ३७२ ५२ २१० १० પધ जे अविकलपी अनुभवी | जे असुद्ध परनति धरै जे केई निकटभव्यरासी | जे जिय मोह नींदमैं सौवें | जे जीव दरबरूप तथा जे जे मनवंछित विलास जे जे मोह करमकी परनति जेते जगवासी जीव जेते जीव पंडित खयोपसमी | जेते मनगोचर प्रगट-बुद्धि जे दुरबुद्धि जीव जे न करें नयपच्छ विवाद जे निज पूरब कर्म उदै । जे परमादी आलसी जे परिनाम भए नहिं कबही जे प्रमाद संजुगत गुसांई जे मिथ्यामति तिमिरसौं जे विवहारी मूढ नर जे समकिती जीव समचेती जैसे उसनोदकमें उदक-सुभाव जैसैं एक जल नानारूप जैसें रजसोधा रज सोधिके जैसैं एक पाकौ आंबफल जैसैं वट वृक्ष एक तामें फल हैं जैसैं करवत एक काठ जैसैं काहू चतुर संवारी है जैसैं काह चंडाली जगल पत्र | जैसे काह जंगलमैं पावसकौ પૃષ્ઠ | પધ २३६ | जैसे काहू देसमें सलिल धारा २५२ | जैसैं काहू देसकौ बसैया ११५ जैसैं काहू नगरकै बासी १७८ | जैसे काहू बाजीगर चौहटै ३५१ | जैसे काहू रतनसौं बीध्यौं है १५० | जैसैं कोऊ एकाकी सभट | १९४ | जैसे कोऊ कूकर छुधित १०९ जैसे कोऊ छुधित पुरुष ११६ । जैसैं कोऊ जन गयौ १११ | जैसे कोऊ पातुर बनाय | जैसैं कोऊ मनुष्य अजान ८४ जैसैं कोऊ मूरख महासमुद्र १५७ जैसैं कोऊ सुभट सुभाइ २३५ | जैसैं गजराज नाज घासके जैसैं गजराज परयौ २३४ जैसैं चंद किरनि प्रगटि भूमि २५२ जैसैं छैनी लोहकी ३०३ | जैसे तृण काठ बांस २३९ जैसे नर खिलार चौपारिको ७९ जैसें नर खिलार संतरजको | ८९ | जैसैं नाना बरन पुरी बनाइ | १२७ | जैसैं निसि वासर कमल रहै | ३५६ । जैसैं पुरुष लखै परवत चढि ४१० जैसे फिटकड़ी लोद हरड़ेकी | ६४ | जैसैं बनवारीमैं कुधातके | २६६ | जैसैं भूप कौतुक सरुप करै | जैसैं मतवारो कोऊ कहै ३४२ | जैसैं महा धूपकी तपतिमैं ३९९ १८५ ७६ १७७ २७३ २१४ ३१ २८२ २८३ १९५ १३२ २३६ १५० ३१ १३१ १०६ ७७ Please inform us of any errors on rajesh@ AtmaDharma.com

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