Book Title: Natak Samaysara
Author(s): Banarasidas
Publisher: Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust

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Page 454
________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates પધોની વર્ણાનુક્રમણિકા ૪૨૭ પધ २५३ १८४ ३७७ १८७ २७९ ३१२ ३०६ ४४१ २७९ ३०३ ४१२ | कुलका १८१ ३४६ २०४ करम पिंड अरु रागभाव करम भरम जग-तिमिर-हरन | करम सुभासुभ दोइ कर्मजाल-जोग हिंसा | कर्मजाल-वर्गनाकौं वास | कर्मजाल-वर्गनासौं जगमैं कर्मनिकौ करता है भोगनिकौ | करुना वच्छल सुजनता करै और फल भोगवै करै करम सोई करतारा कलपित बात हियै नहीं आने कलावंत कोविद कुसल कही निरजराकी कथा कहै अनातमकी कथा कहै विचच्छन पुरुष सदामें एकहौं कहै विचच्छन मैं रह्यौ । कहै सुगुरु जो समकिती | कहौं दसम गुनथान दुसाखा कहौं मकित-पदकी कथा कहौं सुद्ध निहचै कथा कह्यौ प्रथम गनथान यह काच बांधै सिरसौं सुमनि बांधै काज विना न करै जिय उद्यम काया चित्रसारीमैं करम परजंक कायासौं विचारै प्रीति मायाहीसौं काहू एक जैनी सावघान वै परम | किये अवस्थामें प्रगट ૫ઇ | પથ ९१ | क्रिया एक करता जुगल २ । कीचसौ कनक जाकै नीचसौ १०२ | कुगुरु कुदेव कुधर्म धर १७६ | कुंजरकौं देखि जैसैं रोस करि १७५ | कुटिल कुरुप अंग लगी है १७४ | कुंदकुंद नाटक विषै २४४ | कुंदकुंद मुनिराज प्रवीना ३७६ | कुदकुंदाचारिज प्रथम गाथाबद्ध | २५३ । कुबिजा कारी कबरी ९० कुमती बाहिज द्रिष्टिसौं | कलकौ आचार ताहि मूरख धरम | २२ कृपा प्रसम संवेग दम १७२ केई उदास रहैं प्रभु कारन २५९ । केई कहैं जीव क्षनभंगुर ५० । केई क्रूर कष्ट सहैं तपसौं सरीर २९३ केई जीव समकित पाई अर्ध २०५ केई मिथ्याद्रिष्टी जीव धरै ४०० | केई मूढ़ विकल एकंत पच्छ गहैं ३१२ केवलग्यान निकट जहँ आवै १३ | कै अपनौं पद आप संभारत | ३७१ | कै तौ सहज सुभाउकै १७८ | कोऊ अज्ञ कहै ज्ञेयाकार १४४ | कोऊ अनुभवी जीव कहै १३८ । कोऊ एक छिनवादी कहै २५९ | कोऊ कुधी कहै ग्यान मांहि २१३ । कोऊ क्रुर कहै काया जीव ३४९ | कोऊ ग्यानवान कहै ग्यान तौ २६१ १४३ ३७४ ३०१ । २५४ ४०१ ४१ ३७५ ३२३ २१८ ३३० ३२२ ३२६ ३५६ Please inform us of any errors on rajesh@ AtmaDharma.com

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