Book Title: Namaskar Swadhyay Part 03
Author(s): Tattvanandvijay
Publisher: Jain Sahitya Vikas Mandal

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Page 342
________________ 18] [ नभ२१२ स्वाध्याय उनलं अनइ अबिहामणुं 3 आहारनीहार देखइ नहि ए च्यार, अतिशय जन्म थकी हुई / एक जोयणमाहे नरदेवतिर्यचनी कोटाणकोटि बयसइ 1 नरदेवतियेचनी भाषा नइ सरखी अनइ जोअण लगइ व्यापइ एहवी भगवंतनी वाणी 2 जिनपूठि भामंडल हुइ 3 सवाबिइसई गाउमाहि रोग न हुई। 4 / एतला माहे वयर न हुइ 5 सात इति न हुई / ते केहि मरगी इति न हुई / 7 / अतिवृष्ट न हुई / 8 / अवरसणुं न हुई 9 / दुकाल न हुई / 10 / स्वचक्र परचक्रनो भय न हुई / 11 / ए अग्यार अतिशय- आकाशनइ विषय धर्मचक्र चालइ // 1 // आकशि चामर चालइ / 2 / आकाशइ पादपीठसहित सिधासन चालइ / 3 / आकासि छत्र तीन चालइ / 4 / आकासि रत्नउ धज चालइ / 5 / सोनाना कमल उपरि पग मूकइ / 6 / गढ तीन हुई।७। वखाणनइ समइ च्यारमुख हुइ / 8 / अशोकवृक्ष हुई।९। मारगिचालतां कांटा उंधा थाई / 10 / वृक्ष नमइ / 11 / देवदुंदुहि वाजइ / 12 / सुहातउ वायरउ हुइ / 13 / पंखी प्रदक्षणानी पयरि फरई 141 सुगंधपाणीनी वृष्टि हुई / 15! पांच वर्ण फूलनी वृष्टि हुई / 16 / केश रोम नख वाधइ नहिं / 17 / जघन्य थकउ च्याहरइ निकायना देवतानी कोडी हुइ / 18 / छ रति (ऋतु) इंदिनई सुहाती हुई / 19 / ए ओगणीस अतिशय देवताना कीधा / इम सघलाइ मलीनइ चउत्रीस अतिशय जाशिवा / पात्रीस वाणी गुणकरी सोभायमान // परिशिष्ट-२. પાંચ પરમેષ્ટિના 108 ગુણ [ કઈક હસ્તલિખિત પ્રતિ ઉપરથી આ ઉતારે કરેલ છે. મૂળ સંસ્કૃત છે, છતાં સરલ છે, તેથી ગુજરાતી અનુવાદ આપેલ નથી. શ્રીપાળરાસ વગેરે અનેક ગ્રંથોમાં આ 108 રાણેનું વર્ણન સુલભ છે, તેથી પણ અનુવાદ આપેલ નથી. જ્યાં બહુ જ મોટી અશુદ્ધિ સંસ્કૃત વ્યાકરણ વગેરેની દષ્ટિએ દેખાઈ ત્યાં જ ફક્ત કસમાં સુધાર મૂકેલ છે. આ રેજની આરાધનામાં આ ગુણે અત્યંત ઉપયોગી હોવાથી અહીં સંગ્રહ કરેલ છે.] पञ्चपरमेष्टिनां 108 गुणाः :- 1 अशोकवृक्षप्रातिहार्यसंयुताय श्रीअरिहन्ताय (अर्हते) * नमः / .2 पुष्पवृष्टिप्रातिहार्यसंयुताय श्रीअरिहन्ताय नमः / : 3 दिव्यध्वनिप्रातिहार्यसंयुताय श्रीअरिहन्ताय नमः / * આ રીતે કૌંસમાં મૂકેલ સુધારેલ પાઠ કરવો,

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