Book Title: Namaskar Swadhyay Part 03
Author(s): Tattvanandvijay
Publisher: Jain Sahitya Vikas Mandal

View full book text
Previous | Next

Page 353
________________ નમસ્કાર સ્વાધ્યાય | [17e सर्वांगमश्रुतसमुद्रसुधेन्दुसारः / चारित्रचन्द नवनं सदनं सुखानाम् // कल्याणकुन्दनखनिर्दमनं दराणां / लोकत्रये विजयते परमेष्ठिमंत्रः // 2 // संसारसागरनिमज्जदपूर्वनौका / सिद्धौषधिर्वि विधरोगविनाशने च // निःशेषलब्धिबलबोधतरोश्च बीजं / .. लोकत्रये विजयते परमेष्ठिमंत्रः // 3 // सूर्यः सहस्रकिरणें हरति तमांसि / / सिंहो यथा गजगणांश्व नखैर्निहन्ति // संसारवर्तिदुरितानि तथैव मंत्रो / लोकत्रये विजयते परमेष्ठिमंत्रः // 4 // पद्माकरे रुचिररश्मिभिरौषधीशः / शीघ्रं प्रबोधयति निद्रितकैरवाणि // अन्तः सुषुप्तगुणपद्मदत्मानि चैवं / . लोकत्रये विजयते परमेष्ठिमंत्रः // 5 // भूमण्डलेषु शुभवस्तु न विद्यते तत् / ध्यानेन यस्य ननु यन्नहि साधनीयम् // दुखं न तद्भवति यस्य विनाशनं नो / लोकत्रये विजयते परमेष्ठिमंत्रः // 6 // श्रीपाल देवधरणेन्द्रसुदर्शनाद्याः / पल्लीपतिश्च शिवकम्बलशम्बलाद्याः // ध्यात्वा हि यं पदमगुः परमं पवित्रं / लोकत्रये विजयते परमेष्ठिमंत्रः // 7 // भक्त्या दधाति हृदि यो ननु मंत्रराजं / दिव्यां गतिं व्रजति नूतनमुक्तिमोदम् // चूर्णीकरोति भवसंचितकर्मशैलं / लोकत्रये विजयते परमेष्ठिमंत्रः // 8 //

Loading...

Page Navigation
1 ... 351 352 353 354 355 356 357 358 359 360 361 362 363 364 365 366 367 368 369 370