Book Title: Namaskar Mantrodadhi Author(s): Abhaychandravijay Publisher: Saujanya Seva Sangh View full book textPage 3
________________ ... ( २ ) जनेऊ (उत्तरा सङ्ग) कङ्करण, कुण्डल, अंगूठी व कपड़े प्रादि को मन्त्रित करके सर्व सामग्री को शुद्ध करना चाहिये। ॥ कवच निर्मल मंत्र ॥ ॥ ॐ ह्रीं श्री वद वद वाग्वादिन्यै नमः स्वाहा ॥३॥ इस मन्त्र द्वारा कवच को निर्मल करना चाहिये । ॥ हस्त निर्मल मंत्र । ॥ ॐ नमो अरिहंतारणं श्रुतदेवी प्रशस्त हस्ते हूं फट् स्वाहा ॥ ४॥ इस मन्त्र द्वारा निज के हाथों का धूप के धूवें पर रख कर निर्मल करना चाहिये। ॥काय शुद्धि मंत्र ।। ॐ णमो ॐ ह्रीं सर्वपाप क्षयंकरी ज्वाला सहस्र प्रज्वलिते मत्पापं जहि जहि दह दह क्षा क्षीं हूं क्षौं क्षः क्षीरध्वले अमृत संभवे बधान बधान हू. फट् स्वाहा ॥५॥ इस मंत्र द्वारा शरीर को शुद्ध बनाना चाहिये और अन्तः करण को भी निर्मल रखना, जिससे तत्काल सिद्धि होगी। ॥ हृदय शुद्धि मन्त्र ।। ॐ ऋषभेण पवित्रेण पवित्रोकृत्य आत्मानं पुनिमहे स्वाहा ॥६॥ इस मन्त्र द्वारा हृदय-अन्तः करण को शुद्ध करना चाहिये । ईर्ष्या, द्वेष, कुविकल्प, क्रोध, मान, माया, लोभ का त्याग करना, मिथ्या नहीं बोलना इत्यादि कामों से दूर रहना। Scanned by CamScannerPage Navigation
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